SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महापुराण [ ३९. १८. २४'आसमि गुणिहे गुत्तयमुणिहे'। घत्ता-अरितरुसिहि राउ भईरहि हिसारंमु मएप्पिणु । सरहंगहि तडि थिउ गंगहि 'जिणपावज लएप्पिणु ॥१८॥ १९ ताराहारावलिपविमलेहि सतुसारखीरसायरजलेहिं । कलहोयकलसकविलियकरहिं तहु पयजुयलउ सिंचिउ सुरेहिं। तप्पायधोयसलिलेण सित्त तहिं हुई सुरवरसरि पवित्त। हिमवंतपोमसरवरपसूय अज्जु वि जणु मण्णइ तित्थभूय । मंदारजाइसिंदूरएहि अरविंदकुंदकणियारएहिं। सुपउरमयरंदायंवरहि अंचिवि णवकुसुमकरंबएहिं । आमोयमिलियचलमलिहेहि गंधेहि दिण्णणासासुहेहि । थोत्तेहिं जईसरु धरियजोउ वंदेवि देव गय सम्गलोउ। उप्पाइवि केवलु तिजगचक्खु संपत्त भईरहि परममोक्खु । १० धत्ता--सो मुणिवरु अजरामरु हूयउ खणि असेरीरिउ ॥ ___ भरहत्थहिं णिवसथहिं पुप्फदंतु जयकारिउ ॥१९॥ इय महापुराणे तिसटिमहापुरिसगुणालंकारे महाकइपुप्फयंतविरइए महामन्वमरहाणुमण्णिए महाकच्चे सयरणिवाणगमणं णाम एकणचालोसमो परिच्छेभो समतो ॥११॥ ॥ सेयरचरियं समत्तं ॥ पुत्र वरदत्तके लिए विजयरूपी लक्ष्मीकी सहेली धरती देकर गुणवान् गुप्तमुनिसे कामके मदसे रहित यही व्रत ग्रहण करता हूँ। घत्ता-अरिरूपी वृक्षके लिए आगके समान राजा भगीरथ हिंसा और आरम्भको छोड़कर तथा जिनदीक्षा ग्रहण कर चक्रवाकोंसे युक्त गंगानदीके तटपर स्थित हो गये ॥१८॥ तारोंको हारावलियोंके समान स्वच्छ, तुषारकणों सहित, क्षीरसागरके जलोंसे स्वर्णकलशसे हाथोंसे देवोंने उनके पदयुगलका अभिषेक किया। उनके चरणोंके धोये गये जलसे सींची गयो देवनदी गंगा उस समय पवित्र हो गयी। हिमवन्त सरोवरसे निकलनेवाली गंगानदीको लोग आज भी तीर्थस्वरूप मानते हैं। मन्दार, जुही, सिन्दुवार, अरविन्द, कुन्द, कनेर पुष्पोंके सुप्रचुर मकरन्दोंसे लाल नव कुसुम समूहोंसे अर्चा कर, तथा जिनमें आमोदसे चंचल मधुकर मिले हुए हैं ऐसी नासिकाको सुख देनेवाले गन्धों और स्तोत्रोंसे योगधारी योगोश्वरकी वन्दना कर देव स्वर्गलोक चले गये। त्रिलोकनयन केवलज्ञान उत्पन्न कर भगीरथ परममोक्षको प्राप्त हुए। घत्ता-वह मुनिवर एक क्षणमें अजर-अमर और अशरीरी हो गये। भरतक्षेत्रवासी राजसमूहोंने पुष्पदन्तके समान उनका जयजयकार किया ॥१९॥ इस प्रकार त्रेसठ महापुरुषोंके गुणालंकारोंसे युक्त महापुराणमें महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित एवं महामन्य मरत द्वारा अनुमत महाकाव्यका सगरनिर्वाणगमन नामका उनताकीसवाँ परिच्छेद समाप्त हुभा ॥३९॥ १०.AP असमे । ११. A P गोत्तयम् णेहें। १२. A P जिणपठवज्ज । १९. १. . महुवरेहि; A°महयरेहि । २. A असरोरउ । ३. A P omit सयरचरियं समत्तं"
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy