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________________ महापुराम [३९. १७.१ गउ तेत्तहि जेत्तहि पडिय पुस मायाविसमुछारयविलित्त । अवहरिवि विवियगरले भष्पु जीवाविय कर णिम्मलु वियप्पु । उहिय ते सायरि सायरेण भासियसुरेण महुरक्खरेण । मसु पसुमइ सीहासणु मुएवि गज तुम्हह पित्र पावज लेवि । णिय जोवियघायपरिग्गहेण तुम्हई विडिय गंगागहेण । ता तेहिं विमुक्कउ णिहिल गंथु गउ जेण महाजणु सो जि पंथु । जाया जइ णियजणणाणुयारि णीरंजण थिरमण णिब्वियारि । दोवासपयडपासुलियगत सवालमूलसुणिलीणणेत्त । उत्तीणखप्परोसरकराल दोहरणह भासुररोमवाले। जणदिट्टपुट्टिगयवसपन्च विच्छिण्णगाव तवतावतिव्व । कडाडयजाणुकोप्परपएस उखवासखीण चम्मट्टिसेस। कंकालरूव जगभीमवेस गिजणणिवासि सुइसुक्कलेस । घत्ता--दिहि परियर पसमियमयजर जमसंजमधरणुच्छव ॥ "बहुखमदम कुचियकरकम णावइ थलगय कच्छव ॥१७॥ वह वहीं गया जहाँ माया-विषकी मू के वेगसे लुप्त पुत्र पड़े हुए थे। उसने वेक्रियिक विषको खींचकर भस्मको जीवित कर सुन्दर शरीर में परिणत कर दिया। वे सगर-पुत्र आदरके साथ उठ बैठे। देवने मधुरवाणी में उनसे कहा कि धन, धरती और सिंहासन छोड़कर तुम्हारे पिता संन्यास लेकर चले गये हैं। अपने जीवन के त्यागका परिग्रह है जिसमें, ऐसी गंगा लाने के आग्रहसे तुम लोग प्रवंचित हुए। यह सुनकर उन लोगों ने भी समस्त परिग्रहका परित्याग कर दिया और उसी रास्ते पर गये, जिसपर महाजनला के थे। अपने पिताका अनकरण करनेवालवे निरंज निर्विकार और स्थिरमन मुनि हो गये। जिनके शरीरके दोनों पावभागोंकी पसलियां निकल आयी हैं, जिनके नेत्र कपालके मूल भागमें लीन हो गये हैं, जो उठे हुए खापरके उदरसे भयंकर हैं जिनके लम्बे नाखून और चमकता हुआ रोमजाल है, जिनके पीठके बांसको गोटें दिखाई दे रही हैं, जिनका अहंकार जा चुका है, जो तीव्र तपके तापसे सन्तप्त हैं, जिनके घुटने और हथेलियोंके प्रदेश सूख गये हैं, जो उपवाससे क्षीण है और जिनको केवल चमड़ी और हड्डियां शेष रह गयो हैं । जो कंकालस्वरूप और जगमें भयंकररूप धारण करते हैं, एकान्तमें निवास करनेवाले जो पवित्र शुक्ललेश्यावाले हैं। पता-जो धैर्यके परिग्रहसे युक्त, जराको शान्त करनेवाले, यम और संयमको धारण करनेका उत्सव करनेवाले, बहुत ही क्षमा और दयायाले तथा जिन्होंने अपने हाथ-पैर संकुचित कर लिये हैं ऐसे मानो स्थलपर रहनेवाले ककछप हैं ।।१७।। १७. १. 1 P जेहि तेत्तहि । २. . "सालिस; । रयपलित । ३. गरल दप्प; P"गरलु सप्प। ___४. A P सिंहासणु । ५. : जीविपरराय । ६. A P मायागहेण । ७. 17 यिर मणि । ८. A P दोपापु पपडपंसुलिय। ९. उत्ताणुयखप्परो । १०.AP रोमजाल । ११. गयबंभपव्व । १२. 12 विच्छिण्णगन्ध । १३.APणिज्जणि वास। १४.AP पिहखमदम ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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