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________________ -६.७६.५ ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित मालाओ कयजणदिहिं भावभरियनम्मरस धवलवाणं जयल पुलिपणिलीण बेलाय सरिरायं रसणार अच्छरणाइणियप हरियं पीयं संबयं दुहूणं मरुजालिय परिबुद्धा परमेसरी मणिर ५ अमरु सरहहिं । अणिमसमहु रसं । सीबिषयं । सजलं कमळतोययं । भणिषीढं हरिभरणं । - ईव फर्णिदणिकेथए । रणाणं frani | अरिंग जाळामालयं । कहइ सपो सुंदरी । विट्टा सिविजय संतई । बत्ता - तिस्सी तं फलं कहइ नुसाओ || सुओं देवि भडारओ ||५|| सुह हो ६ धरिद्दी जो रयणत्तयं हिदी जो छत्ततयं बहिही जो भिंतयं सो ते होही डिंभओ अमरविलास णिसत्थओ बिही जरस जयत्तयं । जाजरामरणतर्थं । जाही मोक्मर्णतयं । हिजणगणभयो । तो मंगलइत्थओ | ४७९ १० ५ मालाएँ, जनों का भाग्यविधाता चन्द्रमा और सूर्य जिसमें भावोंसे 1 I कामदेवका रस भरा हुआ है ऐसा रतिवश मत्स्ययुगल धवल षड़ोंका युग्म, जिसमें कमल हंसिनियोंके द्वारा चुम्बित हैं, जिसके तटोंपर बगुले बैठे हुए हैं, ऐसा सजल सरोवर । गर्जनासे भयंकर समुद्र, सिंहासन ( सिहोंसे भयंकर मणिशेठ), अप्सराओं और नागिनोंके द्वारा गाये गये स्वर्गलोक और नागलोक, रत्नोंका हरा-पीला और लाल समूह तथा पवनसे प्रज्वलित ज्वालाओंसे सहित आगको देखकर वह परमेश्वरी जाग गयी। वह सुन्दरी अपने पति से कहती है कि मैंने मखों में रति उत्पन्न करनेवाले स्वप्नोंको देखा । धत्ता--तब उसके लिए राजा उनका फल कहता है कि हे देवी, तुम्हारे आदरणीय पुत्र होगा । ||५|| ५. १.A कालयं । २. A ठडालयं । ३. A४. APणिसारमो । ६. १-A सो तब होही। जो रश्नत्रयको धारण करेगा, जिसे तीनों जगत् प्रणाम करेंगे। जो तीन छत्र प्राप्त करेगा, जन्म- जरा और मरण तीनोंका नाश करेगा, जो बिना किसी चान्तिके अनन्त मोक्षको प्राप्त होगा। सुधीजनोंका आधारस्तम्भ वह तुम्हारा पुत्र होगा। मंगलद्रव्य हाथमें लिये हुए अमर
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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