SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 475
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४५८ महापुराण जइयतुं महु विवाहु किस ताएं तइयतुं धणु ण दिण्णु पई भाएं। १० अञ्ज देहि बंधव जैइ भावइ जेण दुक्खु दौलिए विणावह । घत्ता-भणइ मुणीसा सुंदरि छिर्दहि कुमयमइ ॥ . दसणणाणधरित्तइं रयणई तिणि लइ ॥१६।। ता सम्मत्तु विचार सहिया सावयबाट मुद्धइ संगहियड । तुझु भडारउ सुटु पियक्खणु करुणे कारयि सबहिणिणिरिक्खणु । परसुमंतु परिरक्खणु दत दिणी कामधेणु भयवंत। हूई रेणुय ताइ कयत्थी पभणइ भिक्खुहि पंजलिहत्थी। तुम्हारिसह सजोड दि देतई दीणुद्धरणु सहाउ महंतई । ससहि महंतु हरिसु पयणेप्पिणु ग: रिसि धम्मविद्धि पभणेपिणु । कामधेणु हियइच्छिन दुन्भइ तं तावसकुडुबु तहि रिझह । अण्णहि वासरि सुरगिरिधीरें सहसबाहु संजुउ फयवीरें। गहणणिहेलगु छुडु जि पइट्ठल राउ तदोहणेण से दिट्ठउ । धत्ता--अब्भागयपडिपत्तिइ भोयणु दिण्णु तहु ॥ हिर' भिण्णवं दोहं मि'कुअरहु पस्थिबहु ॥१७॥ देखने के लिए आये । प्रणाम करते हुए बहन ने हंसी-हंसीमें कुछ तो भी मांगा-"जब पिताने मेरा विवाह किया था तो तुम भाईने मुझे कुछ भी धन नहीं दिया था। हे भाई, यदि अच्छा लगे तो मुझे आज दो। जिससे दुख और दारिद्रय न फटके।" __ पत्ता-मुनीश्वर कहते हैं- "हे सुन्दरि, अपनी कुमतबुद्धिको दूर करो और सम्यक् दर्शन, ज्ञान और चरित्र ये तीन रत्न स्वीकार करो" ॥१६॥ १७ तब सस' मुग्धाने ज्ञानके साथ सम्यक्स्व श्रावक व्रत स्वीकार कर लिये। अत्यन्त विचक्षण अपनो बहनसे भेंट करनेवाले आदरणीय मुनि परम सन्तुष्ट हुए और करुणा कर उसे परिरक्षण मन्त्र सहित फरसा देते हुए उन्होंने ज्ञानवान् एक कामधेनु दो। रेणुका उससे कृतार्थ हो गयो। हाथ जोड़कर उसने महामुनिसे कहा-"अपना जीवन भी देनेवाले आप जैसे महापुरुषोंका स्वभाव हो दोनोंका उद्धार करना है।" इस प्रकार अपनी बहन के लिए महान् हर्षे उत्पन्न कर और धर्मवृद्धि हो-यह कहकर वह मुनि चले गये। वह कामधेनु इच्छानुसार दुहो जाती और वह तपस्वी परिवार वहाँ सम्पन्न हो गया। दूसरे दिन सुमेरुपर्वतके समान धीर कृतवोरके साथ सहस्रबाहु आया। वह शोन तापस-गृहमें प्रविष्ट हुआ। तपोधन ( जमदग्नि ) ने राजाको देखा । धत्ता-अभ्यागतको ( आतिथ्यकी ) परम्पराके अनुसार उसके लिए भोजन दिया गया। राजा और कुमार ( कृतवीर ) का हृदय आश्चर्यसे चकित हो गया ॥१७॥ ६. A जं भावइ । ७. A दालिद्द ण आवइ; दालिद्द वि ण आवह । ८. A Vड्डहि । १७. १. A सुद 1 २. P पररक्षणु । ३. " तें। ४. P तहि । ५. AP हियव । ६. A कुमरह।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy