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________________ -६१. १२. ११] महाकवि पुष्पदन्त विरचित सोहम्मि अमरु हूई मरेवि गवधि हि घ बसि कोवि ! खग माणव दाणय जिणिवि समरि णारायण सीरि पइट णयरि । घसा-बलए विजयासुंदरिहि हुई सुय णाम सुमइ । कंकेलिपल्लवारत्तकर पाडलपिल्लयमंदगइ ।।११।। १२ णियमियदुइममणवारणासु घर आयउ दमवरचारणासु । संपुण्णु अण्णु दिपण समिद्धे पंचच्छेर उ पत्ती पसिर्छ । विट्ठी पिउणा सुय दिपणदाण णवजोवण हवे सोहमाण । संणिहियसयंवरमंडचंति देसंतरायणररायति । जोवह वर जा किर रह वरस्थ तावच्छर चयइ वरंबरस्थ । हलि दिलिदिलिए ण भरहि काई पई मई मि सगिंग भणियाई जाई । जा पुवमेव ण लइद णिजम्मु सा इयरहि अक्खन परमधम्मु । सुणि विहिं मि भतरु कह मि माइ पुक्खरवरपुस्विल्लभाइ ! भरहे गंदेउरइणं सुरिंदु णामेण अमियविकमु गरिंदु । तहु अस्थि अजंतमइ ति भज वरकइविज्जा इच जणमणोज । धणसिरि अणंतसिरि सहि सुयाउ उ तुह बैषिण वि सुललियभुयाउ । पास स्थित हो गयी। मरकर वह सौधर्म स्वर्ग में उत्पन्न हुई। यहाँ धरतोको चक्रसे जोतकर तथा विद्याधर, मनुष्य और दानवोंको युद्ध में जोतकर बलभद्र और नारायण नगर में प्रविष्ट हुए। धत्ता-बलभद्र और विजयासुन्दरीसे सुमती नामको सुन्दरी हुई। अशोक पल्लवोंके समान आरक्त हाथोंवाली और बालहसके समान गतिबाली ॥११॥ जिन्होंने मनरूपी दुर्दम पजको वशमें कर लिया है ऐसे घर आये हुए दमवर चारण मुनिको उसने सम्पूर्ण और समृद्ध आहार दिया। वहाँ पांच आश्चर्य प्राप्त हुए। दान देनेवाली कन्याको पिताने देखा कि वह नवयौवनवती और रूपसे शोभित है। जिसमें देशान्तरके राजाओं और मनुष्य राजाओंको कान्ति है, ऐसे उस नवनिर्मित मण्डप में रथवरपर बैठो हुई वह वर देखती है तो आकाशमें स्थित एक अप्सरा उससे कहती है-हे कन्ये, यह तुम्हें याद नहीं आ रहा है कि जो मैंने और तमने स्वर्गमें कहा था कि जो पहले मनुष्य जन्म नहीं लेगा वह दूसरेसे परमधर्म कहेगा। हे आदरणीय सुनो, दोनोंके जन्मान्तरका कथन करता हूँ। पुष्कराध द्वीपके पूर्वभागमें भरतक्षेत्रके नन्दनपुरमें सुरेन्द्र के समान अमितविक्रम नामका राजा था। उसकी अनन्तमती नामकी भार्या थी, जो वरकविको विद्याको तरह लोगोंके लिए सुन्दर थी। उसको मैं और तुम दोनों सुन्दर भुजाओंवाली धनश्री और अनन्तश्री नामकी कन्याएं थीं। २. AP दाणव माणव । ३. AP सवरि । ४. APणाराण । १२. १. AP संरक । २. A समिदु । ३, A सिट्ठ । ४. A सरहिं । ५. A नृजम्मु । ६. P गंदरिहि ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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