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________________ महापुराण ६०. ३२.७ तेण तवंते काम विलुद्ध खयर णिएवि णियाणु णिबद्ध । जायउ सुउ आसुरियहि तरुणिहि असणिवोसु रत्तम चिरर्धरणिहि । पिणियविजाविहां मोहिवि णिय कंचणविमाणि आरोहिदि । १० पमणड लिजगणाहु ण रुसिजन अमियतेय जीवह खम किजइ । णिसुणि णिसुणि किं बहुयइ वत्तई णवमइ जन्मंतरि संपत्तइ । घशा-धुंव पंचमु चोसरु इह सोलहमु जिणेसरु । ___भरहि राय तुई होसहि पुष्पदंतसिरि लेसहि ।।३२।। इष महापुराणे विसट्रिमहापुरिसगुणालंकारे माहाकापुष्पयतविरहए महामनवमरमाणुमणिए महाकव्वे संविगाहमवावलिवणणं णाम सट्टिमो परिच्छे श्री समतो॥३०॥ तपस्विनीसे उत्पन्न हुआ मृगशृंग नामका पुत्र कहा गया। तप करते हुए उसने विद्याधरको देखकर कामसे लुब्ध निदान बांधा। यह आसुरी नामकी स्त्रीसे उत्पन्न हुआ और अपनी पुरानी स्त्रीमें अनुरक्त हुमा। प्रिय श्रीविजयको अपनी विद्याके विभवसे मोहित कर और स्वर्णविमानमें चढ़ाकर उसे ले गया। त्रिजग स्वामी कहते हैं कि हे अमिततेज, क्रोध नहीं करना चाहिए। जीवोंको क्षमा करना चाहिए । सुनो-सनो, बहुत कहनेसे क्या ? नौवां जन्मान्तर प्राप्त करनेपर पत्ता-निश्चयसे तुम पांचवें चक्रवर्ती और यहाँ सोलहवें तीर्थकर होगे। तुम भरतक्षेत्रके राजा और मोक्षलक्ष्मी प्राप्त करोगे ॥३२॥ इस प्रकार श्रेस महापुरुषों के गुणाकारोंसे युक्त महापुराणमें महाकषि पुष्पदन्त द्वारा __विरचित पुर्व महामव्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्य में शाम्तिमाय मषावलि वर्णन नामका साठवाँ परिच्छेद समाप्त हुआ ॥५०॥ ३. P आसुरिहि । ४. AP विरु घरिणिहि । ५. A थिउ णिय; P पिउ मयं । ६. P बुत्तइ । ७. A ध्रव । ८. A राम।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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