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________________ ३८२ ५ १० कणयल्या सररुहलय णांमें धीय बेणि तोहि मृगणेत्तर विज्जैम ईदेवि हि यदुम्मइ अमियत्रेण कंतियहि णवेपिणु सागय सग्गहु आराईयहु सुर जोएब सुरु रंजिय काले जंत सुरलोयहु चु कणयलया जलरुहपीड दुर्विदण पंकयमुह सोक्खु असं सुरु मुंजे प्पिणु हुई कहिं मि महाबलकामिणि सार्ज जिणणाई सिट्ट आयओसार कासु वि को विप किं किर जुज्झछु हवं मायरि चिरु तुम्हई तणयउ महापुराण ३० णियंकर भल्लि घिरा णं कामें । कयलीकंदल को मलग'तव । तासु जि राय सुय पोमावइ । कणयमाल सावयव लेप्पिणु । भोयभार संपीणिर्यैजी बहु | पोमावर हूई सुरलंजिय । कणमालकुंड लि एवं हुउ | कोई किसी से [ ६०.३०.१ कुछ बे जाया रणरातिणुरुह । सुरलंजिय सग्गाल चपेष्पिणु । दिor विवाहितु गयगामिणि । तं पथ्यक्खु विदिट्ठ ॥ दोहिं मि जुन्झु णिवार हुँ ||३०|| ३१ શૈવ उसकी कनकलता और पद्मलता नामकी सुन्दर कन्याएं थीं, जो मानो कामदेव के द्वारा फेंकी गयी उसके हाथ की भलिकाएँ थीं। उसकी दोनों कन्याएं मृगनयनी और कदली कन्दलके समान कोमल शरीरवाली थीं। उसी राजा ( चक्रध्वज ) की विद्युत्मती देवीसे दुर्मतिको नाश करनेवाली पद्मावती नामकी देवी हुई। अमितसेना नामकी गायिकाको प्रणाम कर कनकमाला श्रावक व्रत लेकर जिसमें भोगोंके मारसे जीव प्रसन्न रहता है, ऐसे सौध में स्वर्ग में गयी । देवको देखकर पद्मावती रूपसे रंजित हो गयो और वह स्वर्ग में दासी हुई। समय बीतनेपर स्वर्गलोकसे च्युत होकर मैं कनककुण्डली देव हुई हूँ। कनकलता और पचलता अपने कर्मसे विनीत दोनों पुत्रियाँ मरकर कमलमुख इन्द्रसेन और उपेन्द्रसेन के नामसे रहनपुर के राजाको पुत्र हुई है। बहुत समय तक असंख्य सुखका भोग कर वह देवदासी स्वर्गसे च्युत होकर कहीं अनन्तमती नामकी ater हुई। और वह गजगामिनी तुम्हें विवाह में दी गयी । भवसंसरणुण किंपि वि सुसहु । होतियाच परिपालिया पेणयः । घसा--जो कुछ जिननाथने कहा था, उसे मैंने आज यहाँ प्रत्यक्ष देख लिया । बाज मैं तुम दोनों को युद्ध से मना करने और अलग करते आया हूँ ||३०|| ३१ युद्ध न करे, संसार के परिभ्रमणको क्या कुछ भी नहीं समझते। मैं P ३०. १. A विकरें । २. A हो नि ताहि मिर्ग । ६. AP विज्जमई १४. AP जीयहु । ५. AP सवें । ६. A एपिणु । ३१. १. पालयविगमत |
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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