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________________ ३८० महापुराण [६०.२७. ४सिरिमइदेवि हि जयरुप्पण्णी तें सिरिकंत णाम सुय दिण्णी। दुज्जणमणपइसारियसबाहू सिरिसेणंगरूहहु पुरिमिल्लहु । सम वहल्लियाइ गयगामिणि अवर पवर संपैसिय कामिणि । साणंतमइ उविदह रत्ती मोहें मयरोहेण व मत्ती। घत्ता-गंदणषणि णिवसंतहिं दोसु रोसु चितंतहिं॥ कारणि ताहि अजुत्ताई विहि मि जुझु आढत्तउं ||२७|| २८ धाइय पहरणपाणि ससंदण सिरिसेणे अवलोइय गंदण । कह व णिवारहुं वे वि ण सकिउ परवा दूमिउ चित्ति चमकिउ । रज्जु सणेहु सदेहु पमाइवि विससेलिधगंधु अग्याइवि । रायाणीयउ तेण जि मग्गे दियधीय वि सं तिह णासर्गे। गरेयवेई महियलि णिवडेपिणु मउलियणयणई तेत्थु मरेप्पिणु । धादइसडि पुषभार्यतरि उत्तरकुरुहि सुमोणिरंतरि । चत्तारि वि अजई संजायई छहणुसहसपमाणियफायई। जायेड णिब्भरु पेमरसिङ्ग राउ सीहणंदिय मिडणुझाई ।। हुई मुणिवरदाणे दिय बंभणि भामिणि पुरिर्स अणिदिय । प्रांगण में शत्रुदलका संहार किया है ऐसा महाबल नामका राजा था। उसके अपनी श्रीमती नामको देवी सरसे उसम्म श्रीकान्ता नामकी पुत्री थी। दुजनोंके मनमें शल्य उत्पन्न करनेवाले श्रीषेणके पहले पुत्र इन्द्रसेनसे उसका विवाह कर दिया । उस बहू के साथ एक और गजगामिनी (अनन्तमति) स्त्री भेजी गयी। वह अनन्तमती उपेन्द्रसेन में अनुरक्त हो गयी, मोहके कारण वह मदिरा समूहके समान मतवाली हो उठी। धत्ता-नन्दनवनमें निवास करते हुए, दोष और कोधका विचार करते हुए उन दोनों के बीच उसके कारण अयुक्त युद्ध प्रारम्भ हो गया ॥२७॥ हाथमें हथियार लेकर रथसहित दोनों भाई दौड़े। श्रीषेणने पुत्रोंको देखा, वह उन दोनोंको किसी भी प्रकार मना नहीं कर सका। राजा मनमें दुःखी हुआ और आश्चर्य में पड़ गया। राज्य, अपना शरीर और स्नेह छोड़कर तथा विषकमल पुष्पकी गन्धको मूंघकर, रानियां भी उसो मार्गसे, और उसी प्रकार ब्राह्मणकन्या भी नाकके अग्रभागसे ( सूंघकर) भारी वेदनासे धरतीतलपर गिरकर और बन्द किये हुए नेत्रोंसे भरकर धातकीखण्डकी पूर्वदिशामें सुन्दर भोगोंसे निरन्तर उत्तर कुरमें श्रेष्ठ लोग उत्पन्न हए। उनके शरीरका प्रमाण छह हजार धनुष था। राजा श्रीषण और सिंहनन्दिताका जोड़ा उत्पन्न हुआ जो प्रेमसे रसमय और पूर्ण था। ब्राह्मणी सत्यभामा स्त्री हुई और रानी आनन्दिता पुरुष । ६. AP पुस्विस्ला। २८. १. " से लेंथ । २. A रायाणियर बितेग जि । ३. A सरस्वेय; P गरएं। ४. A सुललियाण रंतरि । ५. A जोय णिमरम्म । ६. AP राय । ७. A भारिणि । ८. AP पुरिसु ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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