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________________ । ३८. २५.१ दुसयाई इगिवीससहासई सिक्खुयरिसिहिं विमुक्कघणासई । घउसयाई णवसाहसई सिट्टई णाणतयसंजुत्तेहं विदुई। केवलणाणिहिं वीससहासई जाई अगसंगणिण्णासई। ताई जि पुणु चउसयहिं समेयई विक्किरियारिद्धिहरह पोयई । सवसमसहसई पुणरषि उत्तई घउसयाई पण्णासइ जुत्तई । सम्गारोहणसुहय णिसेणिहिं ।। संमयई मणपजवणाणिहिं । तेत्तियई जि पण्णासह रहियई दिपणुतरहं विवाइहिं विहियेई। एवं गणतगर्णतहुं आयन एक्कु लक्खु भिक्खुहूं संजायउ । अजह लक्खई तिणि समासवि उपरि सहसई वीस णिवेर्सदि। तेत्तिय ह सौवय आहासवि पंचलक्ख अणुवइयहि घोसदि । संखाराहेय देव णिसवि" देविहिं किह परिमाणु"गवेसविं। पत्ता-इय एत्तियसंघे परियरिउ पुन्वहं विरश्यपेर हिय ॥ "तेपण्णलक्खु महियलि भमिवि बारहवरिसहिं विरहिय ||२५|| सिहरिहि दरिसियदरिमयवेयहु मासमेत्तु थिउ पडिमाजोएं पुणु अवसाणि गंपि संमेय । जाणेमि णाहु विमुक्कट जोएं। घनकी आशासे रहित इक्कीस हजार सातसो शिक्षक मुनि थे। नौ हजार चार सौ, तीन झानोंसे युक्त ( अवधिज्ञानी ) कहे गये हैं। कामके संगका नाश करनेवाले बीस हजार केवलज्ञानी। इतने ही अर्थात् बीस हजार और चार सौ विक्रिया ऋद्धिवालों को जानना चाहिए । स्वर्गारोहणको सुखद नसैनो मनःपर्यय ज्ञानो बारह हजार चार सौ पचास । पचास रहित इतने ही अर्थात् बारह हजार चारसी उत्तर देनेवाले अनुत्तरवादी। इस प्रकार गिनते-गिनते एक लाख भिक्ष हो जाते हैं. संक्षेपमें तीन लास्त्र बोस हजार आयिकाएं और इतने ही में श्रावक कहता हूँ। मैं पांच लाख अणुव्रतियों ( श्राविकाओं) की घोषणा करता हूँ। में देवोंका संख्यारहित निर्देश करता हूँ। देवियोंके परिमाणको मैं क्या खोज करू? घत्ता-इस प्रकार इतने संघसे घिरे हुए, बारह वर्ष कम त्रेपन लाख पूर्वतक, दूसरोंका हित करते हुए उन्होंने परतोपर परिभ्रमण किया ॥२५॥ २६ जिसकी घाटियोंमें हरिणोंका वेग दिखाई देता है, ऐसे सम्मेदशिखरपर वह अन्तमें गये । एक माह तक प्रतिमायोगमें स्थित रहे । मैं जानता हूँ फिर स्वामी योगसे विमुक हो गये। इस २५. १. A P"संजुत्तई । २. १ तत्तई । ३. A P सुहणिस्सेणिहि, but T मुहय सुखर । ४. P संभूयहिं । ५P वडियई। ६.A Pएम । ७.A Pसमासमि। ८.AP गिवेसमि१.AP सावदसाहासमि । १०.A Pघोसमि। ११.AP णिहेसमि। १२. A P कहि । १३. A P गसमि। १४. AP बिहरह परहिय । १५, A तेचण लक्ख; P सो एमकुरुक्षु । २६.१.A दावियरिसरिय: Pदरिसियदरिसरिवेपह।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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