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________________ १० महापुराण [ ५८. २३. ९इच्छा पेच्छा णीसेसु ताम विहुयणु अर्णतु आयासु जाम । संतेण समियफुलाउहेण । चश्थेणं तेण सीराउहेण। पचा-बषगयरइ भरहेरावइ जंणरेहिं आराहिर्ड ॥ सिद्धः सिवसुई लद्धउं पुप्फदंतजिणसाह ।।२।। इस महापुराणे तिसहिमहापरिसगुणालंकारे महाभयभरहाणुमण्णिए महाकपुष्फयतविरइए महाकम्वे अर्णतणाहपहपुरिसुतममासूयणकाईतरं णाम ___ भटेवणासमो परिच्छेत्रो समतो n५५ Marvvvveramm है, न मल है और न स्नान, जहाँ यात्माके द्वारा आत्माको जाना जाता है। यह समस्त विश्वको वहाँ तक इच्छा करता है और देखता है, जहाँ तक अनन्स त्रिभुवन और बाकाश है। शान्त कामदेवका शमन करनेवाले इन चौथे बलभद्रने घसा-रतिसे रहित भरतश्रेष्ठकी जो मनुष्यों के द्वारा आराधना की जाती है, पुष्पदन्त जिनके द्वारा वह कषित सिंह शिवमुख उन्होंने प्रत किया ।।२६|| इस प्रकार प्रेसठ महापुरुषों के गुणाकारोंसे युक्त महापुराणमें महाकवि पुष्पदन्त वारा चित एवं महामन्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्य में भनन्तनाथ सुप्रभ पुरुषोत्तम भौर मधुसूदन कयान्तर नामका भावनपाँ परिच्छेद समाप्त हुआ ॥an AP घोरपेण । ७.AP तं व सिवसुह सिद्ध। Y. AP बाद। ५. A पुल्लारण । ८. AP परिसोत्तम । ९. AP अट्ठावण्णा ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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