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________________ - ५८. १८.१२] महाकवि पुष्पवन्त बिरचित ते बेणि वि खयराम रहं पुज । - हरिकंधर धवलधुरंधर जोइवि कलहपियारs || महरा दायिधायहु जाइवि अक्खड़ णार ||१७|| १८ ते वेणि वि साहियसिद्धषिज घसा भो भो महसूयण सुम्रीह सुंदर सोमपदेइजाय दारावरपुरवर दोणि भाय णं तुहिणंजणमहिर महंत पणास सरासणदेहमाण तर्हि कालेस लोणउ भइ एम्ब st to a मई जीवमाणि आपणु दुम्मियमणेण पडवक्पससिय विषमासु भणिष्टं भो भो लहु देहि कम्पु समरंगणि को तुह लुइइ लीह । म दिवा सुणि रायाहिराय । लक्कु विपा वार्ड छ । frर ती रिस खावंत | संगाम रंगणिध्वूढमाण | भो सुप्पर महिब तुहं जि देव । को जीवन गुणसंणियिषाणि । दादू दिष्णु महसूयणेण । गतासु पासि पुरिसुतमासु । aferreray किं किर करहि दप्पु । घत्ता - पढ महि कलि अवगण्णहि करि उचरं महु फेरउं ॥ महसूयणि भिडिय महारणिण रैमइ खग्गु तुहार ||१८|| ३३१ १० ५ १८. १. A लड् । २. AP वीरिसाउअंत । K but corrects it to रमई 1 १० हुआ। वे दोनों क्रमशः बलभद्र और नारायण थे। वे दोनों हो धवल और कृष्ण वर्णके थे, वे दोनों ही उन्नत पुण्यरूपी धान्यवाले थे । उन दोनोंने विधाऐं सिद्ध की थीं। वे दोनों ही विद्याधरों और अमरोंके द्वारा पूज्य थे । 1 घता - वृषभके समान कन्धोंवाले और धवल घुरन्धर उन दोनोंको देखकर कलहप्रिय नारद जाकर आघात करनेवाले धरतीके राजासे कहता है ||१७|| १८ "हे सुभटोंमें सिंह मधुसूदन, युद्धके प्रांगण में तुम्हारी रेखा कौन पोंछ सकता है ? हे राजाधिराज, सुनिए - सुन्दर, सोमप्रभके शरीरसे उत्पन्न द्वारापुरी में मैंने वो भाई देखे हैं। उनकी कातिको इन्द्र भी नहीं पा सकता मानो वे महाद हिम और नीलांजनके पहाड़ हैं, स्थिर गोर तीस ला वर्षकी आयुवाले हैं, उनके शरीरका प्रमाण पचास धनुष है, दोनों समरके प्रांगण में निर्वाह करनेवाले हैं।" तब उनमें जो श्याम वर्णका सुप्रभ नामका (पुत्र) राजासे कहता है कि तुम्हीं एकमात्र देव हो, मेरे जीते हुए दूसरा कौन राजा हो सकता है ? मेरो प्रत्यचापर बाण चढ़ाने पर कौन जीवित रह सकता है तब क्रुद्ध होकर मधुसूदनने पीड़ित मन होकर अपना दूत भेजा। जिसने शत्रुकी विक्रमाशाको संशय में डाल दिया है, ऐसे उस पुरुषश्रेष्ठके पास गया और बोला, "अरे-अरे, शीघ्र कर दो। हे अज्ञानी, तुम घमण्ड क्यों करते हो । धत्ता- तुम राजाको मानो, कलहकी उपेक्षा करो, मेरा कहा हुआ करो । मधुसूदन के महायुद्ध में लड़ते समय तुम्हारा खड्ग नहीं ठहरेगा ॥ १८ ॥ ३. AP का । ४. AP दूमियं । ५. A परध;
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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