________________
३२२
[५८. ५.९
महापुराण वियसियतामरसायरो
मयरकरिल्लो सायरो। गरूयं गयरिउआसणं
सुरसउहं तमणासणं। णिद्धं णायणिहेलणं
काओयरकयकोलणं । दिसिवहपत्तमऊडओ
चंचिररयणसमूहओ। पसरियजालाणियकरो
विमलो मारुयसहयरो। घसा-फलु बालहि सिक्षिणयमालहि घुफ्छंतिहि धवलच्छिहि ।।
पइ भासइ तणुरुहु होसह तिजगणाहु तुह कुच्छिहि ॥५॥
राय घर सयमहपेसणेण कंचीणिबद्धकिकिणिसणेण । आगय सिटि हिरि निहि कति दुद्धि गिर इन जबसायहि मासुद्धि । माणिकिरणपसरियवियार छम्मास पडिय घरि कणयधार । कत्तियपडिश्यदिणि चंदेसुकि रेवइणक्रवत्ति मलोहमुक्ति। गयरूवें गंगापंडुरेण
कयसुकयमहीरहफलभरेण । अब इण्णु सुराहिउ गम्भवासि चउभेयदेवपुजाणिवासि । अहिसित्तई मायापियरयाई मंगलकलसहि जिणगुणरयाई । तिहुवणवइगुरुहि गुरुत्तणेण ___ समलंकियाई सुपहत्तणेण । घना-णचंतहिं मउ गायतहिं करयतूरणिणायहिं !
घरपंगणु दिसि गयणंगणु छायन अमरणिकायहिं ॥६|| जिनके मुखोंपर कमल समर्पित हैं ऐसे मंगल सहित दो कलश, विकसित कमलयाला सरोवर; मगररूपी हाथियोंसे भरा समुद्र । भारी सिंहासन, अन्धकारको नष्ट करनेवाला सुरविमान, स्निग्ध नागभवन कि जिसमें सांप कोड़ा कर रहे हैं, जिसकी किरणें दिशापथोंमें व्याप्त हो रही हैं ऐसा रंग-बिरंगा रत्नसमूह । जिसका ज्वाला समूह फैल रहा है ऐसा विमल अनल ।।
पत्ता-स्वप्नमालाके फलको पूछनेवाली धवलाक्षिणी बालासे पति कहता है कि तुम्हारो कोखसे त्रिजगस्वामी पुत्र होगा ||५||
इन्द्र की आज्ञासे करधनीमें बंधे हुए किकिणियोंके शब्दोंके साथ श्री, ह्री, ति, कान्ति और बुद्धि वेवियां आयीं और उन्होंने जयश्यामाको गर्भशुद्धि की। माणिक्य किरणों से जिसका विकार प्रसरित हो रहा है, ऐसी स्वर्णधारा छह माह तक घरमें बरसी। कार्तिक कृष्णा प्रतिपदाके दिन, मल समूहसे मुक्त रेवती नक्षत्र में गंगाके समान सफेद गजरूप में, किये गये पुण्यरूपी वृक्षके फलके भारके कारण वह सुरराज, चार प्रकारके देवोंके पूजा-निवास उस गर्भवासमें आया। जिनवरके गुणोंमें रक्त माता-पिताका मंगल कलशोंसे अभिषेक किया गया। तथा त्रिभुवनपतिके पिताको गुरुत्व और सुप्रभुत्वसे अलंकृत किया गया।
पत्ता-नाचते हुए, कोमल गाते हुए, हाथोंसे बजाये गये तूयों के निनादोंवाले अमरनिकायोंसे गृह-प्रांगण, दिशाएं और आकाशरूपी प्रांगण बाच्छादित हो गया ॥६॥
२. P पिटुं णाय । ३. P सहोयरी। ६.१. A अयसामहो । २. A चंदमुक्कि । ३. AP पुजापवेसे ।