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________________ १४ ५ १० अदीणकामबाणचारणा मो विसालमोहजालहिंदणा णमो णिहित्तसुण्णवाइवासणा णमो गयालसालसीलभूषणः मो विमुकन्दघोसणीसणा णमो अनंतसंतसम्भावणा महापुराण णमो महाभवं बुरासितारणा । णमो जियारियरायणंदणा । णमो अणेयमेयभावभासणा । णमो पण दिसणा णमो रिसी तवोविद्दीपयासणा । मोरेत मोक्खमादावणा । धत्ता - इय बंदिवि अमराणंदियहि णंदणषणसुच्छाय हि ॥ आपणु उज्झहि परमजिणु इंदें अपित मायहि ||१६|| १७ काले जंतें जाय उ पोढर का षि पारि आलिंगणु मा का वि कुमारि भइ मई परिणहि एकसु देहि दिट्ठि सुहगारी इणारीयणु होतु रसिल्लब रक्खहि देवदेव णियसंगें त्रिणा सुरवडणा घरु पिंगु [ ३८. १६. ३ जयवइ णवजोणि आरूढउ । कवि कामावर पायहि लग्गइ | विरहु भडारा किं तुहुं ण मुणहि । जा जीवमिता दासि तुहारी । कामासत्तष्ठ कामगद्दिल्लए । मारिज्जंतु वराड अंगे 1 पत्थि जिणकुमारु पण वेष्पिणु । पूज्य आपको नमस्कार हो, अदीन काम बाणोंका ध्वंस करनेवाले आपको नमस्कार हो, हे निर्भय आपको नमस्कार, महासंसाररूपी समुद्रसे तरनेवाले आपको नमस्कार, विशाल मोहरूपी जालका छेदन करनेवाले आपको नमस्कार, जितशत्रुके पुत्र आपको नमस्कार शून्यवादी विचारधाराको समाप्त करनेवाले आपको नमस्कार, अनेक भेदों और भावोंका कथन करनेवाले आपको नमस्कार, आलस्यसे रहित और शीलसे भूषित आपको नमस्कार, प्रसन्न और क्रोधरूपो दूषणको दूर करनेवाले आपको नमस्कार दिव्यध्वनिका शब्द करनेवाले आपको नमस्कार, तपकी विधिके प्रकाशक आपको नमस्कार, अनन्त शाला और समभाववाले आपको नमस्कार; मोक्ष मार्ग के अर्हन्त आपको नमस्कार । पत्ता - इस प्रकार वन्दना कर, इन्द्रने, नन्दनवन के समान शोभा धारण करनेवाली अयोध्या में आकर जिनेन्द्रदेवको उनको माता के लिए अर्पित कर दिया || १६|| ५७ समय बीतने पर वे प्रोढ़ हो गये। विश्वपति अजितनाथ नवयोवन में स्थित हो गये । कोई नारी आलिंगन मांगती है, कोई कामातुर होकर पैरोंसे लगती है, कोई कुमारी कहती है कि "मुझसे विवाह करो। हे आदरणीय क्या आप विरहको नहीं समझते। एक सौभाग्यशाली दृष्टि दीजिए, मैं जीवित नहीं रहूंगी, तुम्हारी दासी हूँ। इस प्रकार रसमय कामसे आसक्त और कामसे गृहीत होते हुए, कामदेवले मारे जाते हुए नारीजनकी हे देवदेव अपने संगसे रक्षा कीजिए" इस प्रकार पिता और इन्द्रने घर जाकर जिनकुमार अजितको प्रणामकर निवेदन किया। किसी संतसोमभावणा । ५. A मां अरहंत । ३ AP दोस। ४AP १७. १. एक्क सुदिद्धि देखि एक्क सविद्धि देहि मुहगारी । २. A Padd after this: ; कुमर (P कुमरति ) पुणु काल सुहासिज पुन अदलक्ख पणासि ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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