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संधि ५६
सुरवंद विमलजिदि तिरिथ भीमु पालियन्त्रलु ॥
रणि अभिडियष्ट अमरिसि चडिड मडुहि सयंभु महाबलु || ध्रुबकं ।
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दुवई - अवरविदेहि जंबुदीवासिह सिरिउरि पिसुणदुमणो ॥ मित्तमित्तो इष मियकुलकमलभूसणो ॥ ख स लोड of पुर्णिमिंदु | पणइणि मुगु अण्णहु पासि जाइ । कुलभवणि कुल कललु करंति । सव्वस्सु पयच्छइ पुरिसु जेव । माया ण्णु आस बेंति । वा जाम उयरपूरणु हंति । तरु षि पछि सायमरणु । मयगंधवसिं भ्रमरेण हत्थि । रंभास दुद्ध करण |
महिष सो चित नियमणि णरवरिंदु धणु सुरधणु जिह्न तिह थिरुण ठाइ भायर विभायहु अचयरति किंकर चयम्मु रति तेव पोसति नियंति सिसु हवंति भणि बंधव बंधव भणति सिरिलंपडु घरवावहरणु जगि कासु वि को विण एत्थु अस्थि गाइ षि सेविज्जइ वच्छपण
देवों द्वारा वन्द्य विमलनाथ के अमर्षसे भरकर युद्धमें मघुसे भिड़ गये।
सन्धि ५६
तीर्थंकालमें संग्राम प्रिय भोम और महाबली स्वयंभू
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जम्बूद्वीप में स्थित अपर विदेहके श्रीपुर नगर में दुष्टोंके लिए दुषण नन्दीमित्र नामका राजा था जो मित्रके समान और अपने कुलरूपी कमलका भूषण था। वह श्रेष्ठ राजा अपने मनमें सोचता है कि विनाशकाछ में समस्तलोक मानो पूर्णचन्द्र के समान है। जिस प्रकार इन्द्रधनुष, उसी प्रकार धन स्थिर नहीं रहता, कामिनी भी दूसरेके पास चली जाती है, भाई अपने भाईका अनादर करते हैं और कुलभवनमें अपने ही कुलसे कलह करते हैं। अनुचर इस प्रकार चापलूसी करते हैं कि जिससे पुरुष (मालिक) सब कुछ उन्हें दे डालता है। माताएँ आशासे बच्चे को देखती हैं, स्नान कराती हैं, पोषण करती हैं और अपना दूध पिलाती हैं। बहनें तभी तक भाई-भाई करती हैं कि जबतक उनकी उदरपूति होती रहती है। लक्ष्मीका लम्पट पुत्र भी घर के धनका अपहरण और पिता मरणको इच्छा करता है। इस संसार में किसीका कोई नहीं है । जैसे मदगन्धके वश से भ्रमरके द्वारा हाथोकी और रंभाते हुए बछड़े के द्वारा दूषके लिए गायकी सेवा
१. १. A omits रणि । २. A पुण्णमिषु । ३. A कुल भवणु कलकलयल; P कुलभवणि कुलहरुलयलु । ४. A सुसंहति । ५. P साथ