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________________ -५५, ५.५] महाकवि पुष्पवास विरचित जक्खाहित तुरियर्ड जाहि तुहं करि पुरु घेरि चिंति भोयसुहं । ता पुरवर णिहिता विहिउं। णं सगखंडु धरणिहि णिहिउँ । दहिकुट्टिमयलजियसरयघणु गयणग्गलग्गमणिमयभवणु । वणरुक्खराइसुरहियपवणु वणरासररयफलहंसगणु । सयणागमहरिसियपरयणु रयर्णसुजालजियसियसधणु । धणु दिजइ जहिं बहुदेसियह सियरहियह णिवपदासियहं । सियसिहरबद्धधयपाउलिलं पाडलपूर्यफलदुमललिऊँ। ललियंगपसाहियकामियणु कामियणपरोप्परविष्णमणु । पत्ता-णरणियराउलइ तहिं राउलइ जयदेविड सुहसुत्तइ ।। सिविणावलि णिसिहि उग्गयदि सिहि दोसइ कोमलगत्तइ ॥४॥ १० करि दाणजलोलकवोलयल पंचाणणु रुइहयहारमणि दुइ सुमणालउ मालउ स्त्रयलि तिमि दीपिणे रमत तरंत जलि को कलस ससलिल सकमल सदल देतु बसहु जियवासहधालु। अरविंदणिलय माहवरमणि । हिमयर अहिमयरुग्गय विउलि। संणि हिय मणोरम धरणियलि | णलिणालय मयरालय विमल । हे यक्षराज, तुम शीघ्र जाओ और धरतीपर नगर और चिन्तित सुख उत्पन्न करो।" तब कुबेरनाथने पुरवरकी रचना की मानो स्वर्गखण्डको ही धरतीपर रख दिया गया हो। जिसमें स्फटिक मणियोंके तल द्वारा शरद् मेघ जीत लिया गया था, जिसके मणिमय भवन गगनतलको छूते थे, जहाँ बनवृक्षराजिसे पवन सुरभित था, जिसके कमलसरोवरों में कलहंससमूह रत हैं, जहां स्वजनोंके आगमसे प्रचुर जन प्रसन्न होते हैं, जहां रत्नोंके किरणजालसे देवोंका धन जीत लिया गया है, जहाँ बहुत-से देशो लोगों तथा धन रहित नित्य प्रवासियोंको धन दिया जाता है, जहाँ श्रीशिखरों पर रंगबिरंगी पताकाएँ हैं, जो पाटल पूगफल ( सुपाड़ो) वृक्षोंसे सुन्दर है, जहां कामिनीधन सुन्दर अंगोंसे प्रसाषित हैं, जहां कामी लोग एक दुसरे पर मन देते हैं पत्ता-मनुष्य समूहसे संकुल उस राजकुलमें सुखसे सोयी हुई कोमल देहवाली जयदेवी प्रभातके समय रात्रिमें स्वप्न देखती है ||४|| मदजलसे आई कपोलतलवाला हाथी, बेलोंका बल जीतनेवाला गरजता हुआ हाथी, अपनी कान्तिसे हारमणिको तिरस्कृत करनेवाला सिंह, कमलघरवाली लक्ष्मी, आकाशतलमें दो पुष्पमालाएँ, आकाशमें उगे हुए चन्द्रमा और सूर्य, जलमें तैरती और क्रीड़ा करती हुई दो मछलियां, दल, कमल और जलसे सहित धरतीपर रखे हुए सुन्दर दो कलश, स्वच्छ सरोवर और समुद्र, ४. १. AP घर । २. A चितियभोयसुई। ३. A सिरिरयवसईसगणु । ४.AP तहि । ५. A पासक पूईफल । ६. AP सुई सुत्तए । ५.१. A डिंकंतु । २. दोषण । ३. AP तरंत रमंस । ४. P लस सलिल ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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