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________________ – १५.२८ ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित करइ सुवार्य । जस्स महिंदो । णविडं विमलं | यशुवा वसिय हिंदो तं गुणविमलं मोहंगं भणिमो सरसं घत्ता--तेरहमद अवरु जणसंतियर सुतेर्गोफ सोमालइ ॥ अचमि रहिय खयविरहियद जिणु कल्बुप्पलमालइ ||१|| २ धाasis परिभमियहरि तहि विदेह तरंतकरि तहि दाणिकूलि कलंबहरि फलरेंस वह रुक्ख सोक्खलयरि पहुप से परमारमणु कयलीदलवीयणसीयर मंदाणि चालियकुसुमरइ गधीरधम्मेणिहि तरस कहंगे | वारियरसं । पुषामरगिरिगंभीरदरि । सीय णायें अस्थि सरि । गवसत्तच्छ्रयछाइयमिद्दिरि । रम्यवइदेसि महाणयरि । जोवणु रमणीमणदमणु । विसिय सरसरसीयरड़ | अण्णा दिणि वणि पीड़ंकरइ । पायंतिय सम्बर्गुत्तमुणिहि । २७३ २० 4 जिन विमलनाथ की इस प्रकार शोभन स्तुति वचनोंकी रचना करता है, ऐसे गुणोंसे पवित्र उनको मैं नमन करता हूँ। तथा मोहको नष्ट करनेवाले, सरस परन्तु काम सुस्रसे रहित उनके कथांगका कथन करता है । पत्ता - नशान्तिके विधाता तेरहवें जिनवर विमलनाथको में कवि पुष्पदन्त मनुष्योंका हित करनेवाली सुन्दरतम उक्तियोंसे रचित, क्षयसे रहित काव्यरूपी कमलमाला अर्चना करना है ॥१॥ जिसमें सूर्य परिभ्रमण करता है ऐसे बात कीखण्ड में पूर्व सुमेरपर्वतको गम्भीर घाटी है । उसके पूर्वविदेह में, जिसमें गज तेरते हैं ऐसो सोता नाम की नदी है। उसके दक्षिण किनारेपर कदम्ब वृक्षोंको धारण करनेवाला जिसमें नव सप्तपर्णी वृक्षोंसे सूर्य माच्छादित है और जो फलरसके प्रवाहवाले वृक्षोंके कारण सुखदायक है ऐसे रम्यकवती देशमें महानगरी है। उसमें राजा पद्मसेन था । लक्ष्मीसे रमण करनेवाला वह नवयुवक और रमणियोंके मनका दमन करनेवाला था । एक दूसरे दिन, जो कदली वृक्षोंके पत्तोके पंखोंसे शीतल है जिसमें सरोवरोंके शीतल जलकण दिशाओं में उड़ रहे हैं, जिसमें मन्द पवनसे कुसुमपराग आन्दोलित हैं, ऐसे पीतंकर नामके वनमें, जिनके मुखसे घीर धर्मध्वति निकल रही है ऐसे सर्वगुप्ति नामके मुनिके चरणों में अपने पुत्र ६. AP गुंफसी मालह; T गफ । ० २. १. AP अवरविदेहि । २. AP सीबोया । ३. P मिहरि । ४ A रिसबहुभव सोमलसरि रस बहूक्लोक् सर 1५, P धम्पु झणिसि । ६. A सब्गुतिं । ३५
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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