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________________ -५२. २५. २२] महाकाय पुष्प विरचितः हरिणा दित्त वित्तं चकं सहसाराधाराजलियं हयगलालकंदलयं दलिय बहलं कीलालं गलियं । कुंडलकिरणं फुरियकवोलं के कृभिणिवलयइ पडियं णं सरसं तामरसं सदलं कालमरालाहिवखुडियं । कामिणिकारणि कलह समत्ती परणरकरसरहयगतो आसग्गीवो विय लियजीवो सत्तमणैरयं तं पतो। णहयरविसहरमहिमणुएहिं सामि भणेपिणु संगहिओ जयजयरवरिउ भुवणेहि हरि हलहरसहिओ महिओ। हिंडिवि दाहिणभरह तिखंडे परवइ सवसं कोण जिओ मागहदेवो परतणुणामो अवि य पहासो तेण जिओ। दिणयरकित्ति हुयवहज डिणा हलिणा तस्स पयावरणा बद्धो पट्टो विउले भाले मंगलविलसियजणरइणा। परपयावाकंपियमुवणो असिवरदसियकूरैमई णिय कुर्लकुवलयकुवलयबंधू जाओ कण्हो चकवई। बहसेढीणं रायं कार्ड जलणजईि ससुरं खयरं आओ गुरुवर्णपणवियसीसो पुणरवि तं पोयणणयरं। धत्ता-लइ दीस पवरु एउ वि अवरु णिच्छयणियमणि उत्तरं || इह सुपुरिसचरिउं बहुगुणमरिउ जगि आत्तु समत्तउं ||२५|| अपने कानोंके लिए त्रिशूलके समान दुर्वचनों को सहन नहीं करते हुए, तथा अपना मुख दंशिताधरों एवं भौंहोंसे भंगुर और लाल आँखोंवाला कर नारायण दोन हजारों आराओंको धाराओंसे प्रज्वलित चक्र छोड़ दिया। अश्वग्रीवका गला और कपाल कट गया। प्रचुर रक्त बह गया। कुण्डलको किरणोंवाला स्फुरित कपोलवाला उसका मस्तक भूमण्डलपर इस प्रकार गिर पड़ा मानो कालरूपी हंसराजके द्वारा तोड़ा गया सदल सरस रक्तकमल हो । स्त्रीके लिए कलहसे मत माला, शत्रु मनुष्यके हाथके चक्रसे आहत, नष्टजोव अश्वग्रीव सातवें नरक गया। विद्याधरों, नागों और मनुष्योंने स्वामी कहकर उस ( त्रिपृष्ठ ) को स्वीकार कर किया। विश्वोंने जयजय शब्दसे पूरित तथा बलभद्र सहित हरिको पुजा की । दक्षिण भरतखण्ड में भ्रमण कर उसने किस राजाको अपने वश में नहीं किया ? वरतनु नामका मागधदेव और प्रभासको भो उसने जीत लिया। दिनकरके समान कीर्तिवाले ज्वलनजटो, बलभद्र और प्रजापति तथा जिसमें मंगलके कारण लोगोंकी रति विलसित है ऐसे अर्ककोतिने उसके विशाल भालपर पट्ट बांध दिया। जिसके प्रचुर प्रतापसे भुवन प्रकम्पित है, जिसके असिवरले क्रूरमति दूषित कर दिया है, जो अपने कुलरूपी कुमुद और पुथ्वीमण्डलका बन्धु है, ऐसा वह त्रिपृष्ठ चक्रवर्ती हो गया। अपने ससुर विद्याधर ज्वलनजटीको विजयार्धको दोनों श्रेणियोंका राजा बनाकर गुरुजनोंके प्रति अपना सिर झुकानेवाला वह फिर उस पोदननगर पहुंचा। पत्ता-लो यह दूसरी बात भी महान दिखाई देती है कि निश्चयरूपसे अपने मन में कहा गया बहुगुणोंसे भरित जगमें आदृत सुपुरुष-चरित समाप्त हो गया ॥२५॥ २. A पितं विसं चित्त। ३. P कलह। ४. A णरए तं पसो। ५. AP पूरिय। ६. A पर । ७. रगई; P करमई। ८. AP णिय कुलणहपल । ९. A राउं काउं। १०.A पणमिय ।।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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