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________________ २२८ महापुराण [५२. १७.१ १७ दुवई-भीमपरक्कमेण भीमेण वि णासियभीमवइरिणा॥ पश्चारिय भिडंत भड बेमिया वि सुरवहुहिययहारिणी ।। हरिमस काई पई मंतु दिदा किमगि पारदरय एषु । हकारिउ किं णियपाणणासु एव हि पइसेसहु सरणु कासु। कुद्धाइ तिविति भुवणेकसीहि तडितरलवीहकरवालजीहि । खा धूमसिह भासिउ सरोसु घरदासि हरतहुं कवणु दोसु । पहिलई. पहुणा मुत्ती मण पच्छाइ तुम्हई दिण्णी अणेण । सिहिजहिणा सामिविरोधणेण कि एएं जडसंबोणेण । दरिसाव मि तुइ जमरायथत्ति लइ पहर पहरु अइ अस्थि सति । ताबे वि लग्ग ते सेण्णणाह बेणि वि सुरकरिकरसरिसबाह । बेणि वि चालियदिवशवाल बेणि वि जयकारियसामिसाल। बेपिण वि उग्गामियचावदंड बेण्णि वि आमेजियकुलिस कंड। बाणेहिं बाण णालि खलंति ते णिहसणसह हुयवह जलंति । पुणु भीमें मुक्कउ अद्धयंदु धूमसिहह णं अट्ठमउ चंदु । १५ रिनदेह मेहि सो पइसरंतु दिउ सुहिणयणहु तमु करंतु । घत्ता-मारिवि धूमसिंह खयकालणिहु खणि हरिमस्सु णिहत्त ।। ___णवर करंतु कलि भड देत बलि असणियोसु संपत्तउ ।।१७| भीम पराक्रमवाले, तथा भयंकर शत्रुओंको न करनेवाले, तथा सुरवधुओंके हृदयमा अपहरण करनेवाले भीमने लड़ते हुए दोनों सुभटोंको पुकारा, "हे हरिश्मश्रु, जुमने यह कौन-सा मन्त्र देखा? तुमने इष्ट परस्त्रीरत्न क्यों मांगा ? अपने प्राणों के नाथको तुमने क्यों पुकारा ? इस समय तुम, भुवनके एकमात्र सिंह, बिजलीके समान लम्बी करबालरूपी जोभवाले त्रिपृष्ठवे कुद्ध होनेपर किसकी शरण में जाओगे?" लम्ब धुमशिखने गुस्से में आकर कहा, कि गृहदासोके अपहरणमें मया दोष? पहले राजाने इसका मन चाहा उपभोग किया। फिर उसने यह तुम्हें प्रदान की। स्वामी विरोधी ज्वलनजटीके द्वारा इस मूर्खतापूर्ण सम्बोधनसे क्या? मैं तुम्हें यमराजको स्थिरता दिखाऊँगा, यदि तुममें शक्ति हो तो शीन्न प्रहार करो," तब दोनों सेनापति आपस में लड़ गये । वे दोनों ही हाथोकी सूहके समान बाहुवाले घे, वे दोनों ही दिक्चक्ररूपी मण्डलको घलानेवाले थे, दोनों अपने स्वामी श्रेष्ठको जय बोल रहे थे; दोनोंने ही अपने चापदण्ड उठा लिये थे, दोनों ही वचतीर छोड़ रहे थे। आकाशमें तीरोंसे तोर स्खलित हो रहे थे, उनके संघर्षणसे उत्पन्न आग जल रही पी, फिर भीमने अपना अर्धेदु तीर फेंका, जो मानो धूमशिखके लिए आठवां चन्न हो, शत्रुके शरीरकी मेधामें प्रवेश करता हुआ वह, सुधीजनोंके नेत्रों में अन्धकार उत्पन्न कर रहा था। पत्ता-धूमक्षिसको मारकर, एक क्षणमें क्षयकाल के समान हरिश्मश्रुको आहत कर दिया। तब केवल अशनिवेग युद्ध करता हुआ और सुभटोंकी दिशा बलि देता हुआ वहाँ पहुँचा ।।१७।। १७. १. A "वहरिणो । २. A हारिणो । ३. A P हरिमस्सु । ४. पर व्यं । ५. K प्राणणासु । ६. A तर । ७. A gणंसहं । ८. A P पहिलो पहुणा । ९. A तं णिहसिवि गर हवयह । १०. AP निहित्त।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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