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महापुराण
[ ५२. १५.३णरचरणचारचारियगयाई हरिखरखुरवडणुग्गयरयाई। अभिडिय सुहड गय कायराई रवपूरियदिसगयणंतराई । वावल्लभल्लनससलियाई
सोणियजलधारारेल्लियाई। लुलियंतकोतभिण्णोयराई
करवालखलणखणखणसराई । चलेमुकचकदारियाई
ल उद्धीहयचूरियरहधुराई। णिवतछत्तधययामराई शिवकॅडयमनडमणिपिंजराई । फयखगविमाणसंघट्टपाई किकिणिमालादलबट्टणाई। विज्ञाहरविजावारणाई
सरपूरियमारियवारणाई । जंपाणकवाडविहट्टणाई
मंडलियमाणणिल्लोट्टणाई । मना- निष्णादिंगणाई कमलाबाई दंतपंतिदट्ठोदई ॥
लुचियकोतलेई बिगिण वि बलई जिह मिहणई तिह दिट्ठई ॥१५||
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दुवई-तो हरिगीवरायसेणावइ धूमेसिहो पधाइओ।
सिरिहरिमस्सुवीरसहिउ हरिसेणे जगे ण माइओ ।। तेण घाइयं
महि णिवाइयं । विलुलियतयं
पडियदंतयं। पद्दरजज्जरं
लग्गभयजरं। करनेके युद्ध में लगे हुए, और विजयश्रीको पाने की कामनावाले थे। जिसमें मनुष्योंके चरणोंके संधारसे गज चलाये जा रहे हैं, जिसमें घोड़ोंके तीव्र खुरोंके पतनसे धूल उड़ रही है । सुभट आपसमें भिड़ गये, और कायर भाग गये। शब्दोंसे दिशाएँ और गगनांतर भर गये। जो वाचल्ल, भाले और झसोंसे पीड़ित हैं, रक्तरूपी जलधाराओंसे सराबोर हैं, जिनमें मात कटी हुई हैं, और भालोंसे पेट फाड़ दिये गये हैं, लाठियोंके प्रहारोंसे रथधुराएँ चकनाचूर कर दो गयी हैं, जिनमें छत्रध्वज और चमरोंका पतन हो रहा है, जो राजाओंके कटक और मुकुटमणियोंसे पोले हैं, जो विद्याधर विमानोंसे टकरानेवाले हैं, जिनमें किकिणियां और मालाएं चकनाचूर हो रही हैं। विद्याषरोंके द्वारा विद्याओंका निवारण किया जा रहा है, तोरोंसे पूरित महागज मारे जा रहे हैं, जंपाणोंके किवाड़ नष्ट कर दिये गये हैं, और माण्डलीक राजाओंका मान नष्ट हो रहा है।
पत्ता-जिन्होंने एक दूसरेको आलिंगन दिया है, एक दूसरेके शरीरोंपर घाव किये हैं, जो दांतोंकी पंक्तियों से अपने ओंठ चबा रहे हैं, बाल नोंच रहे हैं, ऐसे दोनों सैन्य उसी प्रकार लड़ रहे हैं जिस प्रकार मिथुन ॥१५॥
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तब राजा अश्वग्रीवका सेनापति धूमशिाल दौड़ा। श्रीहरिश्मथ नामक वीरसे सहित वह हर्षके कारण संसारमें नहीं समा सका। उसने आघात किया। धरतीपर गिरा दिया, बाँखें छिन्न
२. खुरखणणु । ३. A भल्लसरसल्लियाई; P भल्लरससल्लियाई । ४. A कंवभिग्यो । ५. A
वरमुक । ६. 2 लउश्यियचूरी रह । ७. K नृर्ष । ८. A विनाकारणई । ९. AP कुत । १६. १. A ता ह्यगोव; P तो हयगाव । २. A धूमसिहौवषामो । ३. AP मस्सुवीररससहिउ ।
४. A हरिसे जगे ण माइनो।