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________________ २२० ५ १० महापुराण [ ५२. ८. ११ घत्ता - अग्गढ़ घणर्थणिहिं सीमंतिणिहिं' रणु बोल्लंतहुं चंग ॥ अच्छउ असि अवरु पटुकरपहरु तुह ण सहड़े ललियंगडं ||८|| ९. दुबई -- भासइ विस्सेसेणु भो जाहि में जंपहि चष्फलं जणे ॥ तु पण महं पिदीसेसइ बाहुबलं रणंगणे || तं णिसुणिवि दूयउ ग तुरंतु गहु कहइ अक्षीणमाणु अणिव विसदृकंदोदृणेत्तु संघाण इच्छ गरुडकेट जिड़ सकs तिह विनाबले हिं तापमणइ पहु पीडियकिवाणु किंकर ति णत्थि छाय अविद्देयविहंडण करणु दोसु मदद मि अवलोय अवलोयणिय विज भडथडगय घडर ई सं प उण्णु को गिजालमाला फुरंतु । परमेसर रिपोरिस णिहाणु । समप्प तं परिणितं फलन्तु । दीसइ भीसणु र्ण धूमके । frs मुसलाई सूलहिं सम्बलेहिं । पवहिं हउं सोहमि जुन्झमाणु । माको चि भणेसह हय बराय । erse लहुं रणरहसघोसु । एतहि विमृगवणंदणेण । पेसिय खंगपुंगव बंदणिज । आइय जोइवि पक्खिसेण्णु | घत्ता - सघन स्तनोंवाली स्त्रियोंके सम्मुख युद्ध बोलते हुए अच्छा लगता है, तलवार रहे, स्वामीके कर का प्रहार तुम्हारा सुन्दर शरीर नहीं सहन कर सकता" ॥८॥ ९ तब त्रिपृष्ठने कहा, "अरे तू जा, लोगोंको चपलता की बात मत कर । तुम्हारे राजा और मेरा बाहूबल युद्ध के आँगन में दिखाई देगा ।" यह सुनकर दूत क्रोधकी ज्वालमालासे तमतमाता हुआ तुरन्त गया। वह अश्वग्रीवसे कहता है कि शत्रु अधिक मानी और पौरुषका निधान है। अभिनव विकसित कमलके समान नेत्रोंवाला वह उस अपनी विवाहिता पत्नीको समर्पित नहीं करता। वह गरुड़ध्वजी सन्धि नहीं चाहता। वह भीषण दिखाई देता है, मानो धूमकेतु हो । जिस तरह सम्भव हो, उस प्रकार विद्याबलों, मूसलों, शूलों मोर सम्बलोंसे लड़िए । तब अपनी तलवारको पीड़ित करता हुआ राजा कहता है कि इस समय में युद्ध करता हुआ शोभित होता हूँ । अनुचरोंको मारने में कोई यश नहीं है, कोई यह नहीं कहे कि दीनहीनों को मार दिया गया । अविनीतोंको मारने में कोई दोष नहीं। शीघ्र ही युद्धका हर्षवर्धक घोष करो । दुर्दम दानवोंके दर्पको कुचलनेवाले मृगावतीके पुत्र ने भी यहाँपर, विद्याधर श्रेष्ठोंके द्वारा वन्दनीय अवलोकिनी विद्याको देखने के लिए प्रेषित किया। भडघटा, गजघटा और रथोंसे सम्पूर्ण प्रतिपक्ष सैन्य को देखनेके लिए वह आयी । ว ८. Aथणि 1 ९. A सोमसि । १०. AP सहे । ९. १, AP बीससेणु हो । २. P प ष्णु । ३ AP मिगावई । ४. P खगपुंगम । ५. AP रहहए
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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