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महाकवि पुष्पदन्त विरचित गयं गलियमयजलं भमियभिंगकोलाहलं । विसं रसियपेसलं खरखुरगखयभूयल। करालणाहभइरवं कयरवं च कंठीर। कुसेसणिवासिणि 'सिरिमुविंदसीमंतिथि। पसूयसयमालियं भमरपंतियाकालियं । विहुं विहियज्ञामिणिं खरयरं खचूडामणि । प्रसाण जुयलं चलं कुडजुयं ससंकामलं । सरोतहसरोवरं मयरमंदिरं गजिरं। मईदवरूढयं रणचित्तियं पीढयं । पुरंदरणिलणं भवणमुजलं भावणं ।
महारयणरासिय सिहिणमुरुसिहुब्भासियं । पत्ता-इय पेच्छिवि ताए रायह गपि समासियम् ॥
सिविणियफलु" तेण कंतहि कतै मासिउं ॥६॥
जस्स छत्तत्तय
जस्स लोयत्तयं। वहइ दासित्तणं कुणइ गुणकित्तणं । मणिमयरकंडलो जस्स आहंडलो। घिविवि णवकुवलयं णका कमकमलय। सो तुई तणुरुहो चंडि होही सुहो।
देवदेवो जिणो खंतिपोमिणिइणो । मंडराते हुए भ्रमरोंका कोलाहल हो रहा है, ऐसा मदगज, गर्जनामें बड़ा चतुर और तीव्र खुरोंके असभागसे भूतल खोदता वृषभ, विशाल नखोसे भयंकर, शब्द करता हमा सिंह, विष्णुको पत्नी और कमलमें निवास करनेवालो लक्ष्मी, भ्रपरपंक्तिसं शोभित पुप्पमाला, रात्रिको विहित करनेवाला चन्द्रमा, आकाशका चूडामणि सूर्य, मत्स्योंक। चंचल युग्म, चन्द्रमाकी तरह स्वच्छ कुम्भयुग्म, कमलोंका सरोवर, गरजता हुआ समुद्र सिंहोंपर आरूढ़, रत्ननिर्मित आसन ( सिंहासन ), इन्द्रका निकेतन, उज्ज्वल भावन-भवन ? ( यहाँ नाग लोकका उल्लेख नहीं है ); महारत्नराशि और प्रधुर ज्वालाओंसे भास्वर अग्नि ।
पत्ता-यह देखकर उसने जाकर राजासे निवेदन किया। उसने भी अपनी कान्ताको स्वप्नोंका फल बताया ||६||
हे सुन्दरी, जिनके तीन छत्र हैं, तथा त्रिलोक जिनका दासत्व वहन करता है और गुण कीर्तन करता है, मणिमय मकराकृति कुण्डलोंवाला इन्द्र, नवकमल अर्पित कर जिनके चरणकमलों की बन्दना करता है, ऐसे बह शुभ देव देव, शान्तिरूपी कमलिनीके लिए सूर्य, जिन तुम्हारे पुत्र होंगे । बुद्धि कान्ति श्री लक्ष्मी कौति ह्री, गर्भशोधन करनेवाली देवांगनाएं आयों मत्तगजगामिनी
४. Pणवासिणी । ५. A सिरि अविद । ६. P°सीमंतिणी । ७. AP भवर । ८.A मयंदसुर; P मइंदसिर । ९. AF रमणणिम्मियं । १०. P समासिउं 1 ११. AP सिविणयं ।