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________________ महाकवि पुष्पदन्त विरचित सहूं असीइससई णिरवनहं लक्खई तिणि पउचई अजह । दोषिण लक्ख पालियघरधम्मई मणुयई मणुइहिं पंच सुसोम्मई। अमरच्छरलाइं गयसंखई तिरियई पुणु कहियाई ससंखई। इय एत्तियलोएं संजुत्ता मुषणत्तयराईवय मित्तह। महि विहरतहु धम्मु केहंतहु पुष्प॑दतदेवतु अरहतहु । अहचीसपुवंगविहीणल पुल्वहं एक्कु लक्खु तेहिं शीणउँ । पता-पर मुभिणमुखी फनिदेषासुरणरथुओ। लंबियपाणि मणोहरे थिउ संमेयमहीहरे ॥१५|| आसमाणई पोमई गोत्तई करिवि वेयणीयाई णिहितई । दंडकवोडाजगजगपूरई विरधि मुकई तिपिण सरीरई। तेजेइओरालियकम्मइयई जाई विमुकई पुणु वि ण लइयई। उज्वेनिधि कड्ढिवि आउँचिवि जीवपएस सयलघण संचिति । चउसमयंतयालु थिउ देहाइ भवए सुक्कट्ठमिदिया। अपरण्इइ सहुं मुणिहि सहासे सिद्धउ जिणु जण जयजयघोसें। पुजिय तणु चविहहि मुरिदहिं बंदिउ इंदपडिदरिदहि ।। गइ देवाहिदेवि अवधगह गउ सुरयणु णोसेसु वि सग्गहु । वितण्डावादियोंको प्रत्युत्तर देनेवाले वादो मुनि छह हजार छह सौ, तीन लाख अस्सी हजार निरवद्य आयिकाएं थीं, दो लाख गृहस्थ धर्मका पालन करनेवाले श्रावक थे और सुसौम्या पाँच लाख श्राविकाएं थीं। अमरों और अप्सराओंका कुल असंख्यात था.परन्तु तिथंच ससंख्य कहे गये हैं। इस प्रकार इन लोगोंसे संयुक्त तथा भुबनत्रयरूपी कमलके लिए सूर्यके समान अरहन्त पुष्पदन्तकी धरतीपर विहार और धर्मोपदेशका कथन करते हुए अट्ठाईस पूर्वाग रहित एक लाख पूर्व समय बीत गया। पत्ता-मुनिसमूहसे सहित, नागदेव और असुरोंसे संस्तुत हाथ ऊँचा किये हुए वह सुन्दर सम्मेद शिखर पर्वतपर स्थित हो गये ॥१५|| १६ आयुकर्म, नाम, गोत्र और वेदनीय कर्मका उन्होंने नाश कर दिया और दण्ड, कपाट, प्रतर और लोकपुरणको रचना कर उन्होंने तीनों शरीर छोड़ दिये। जब उन्होंने तैजस, औदारिक और कामेण शरीरको छोड़ दिया तो उन्हें दुबारा ग्रहण नहीं किया । एकत्रित, आकर्षित और संकोचित कर समस्त सघन जीवप्रदेशोंको संचित कर चार समयके अन्तराल (दण्ड, कपाट, प्रतर और लोकपुरण) तक, देहमें स्थित रहकर, भाद्रपदके शुक्लपक्षके उत्कृष्ट अष्टमीके दिन अपराल में एक हजार मुनियोंके साथ, लोगोंके जयघोष के साथ जिन सिद्ध हो गये। चार प्रकारके देवेन्दोंने उनके शरीरकी पूजा की । इन्द्र-प्रतीन्द्र-नरेन्द्रोंने वन्दना की । देवाधिदेवके मोक्ष जानेपर समस्त देवसमूह भो स्वर्ग चला गया। - -- -- ५. A करत । ६. AP पुप्फत । ७. A तहो झीण; P परिवीणलं । ८. A मासमेत्त । १६. १. Pणामयं । २. A दंशकवाला जगजग; P दंडकबाडायरजग। ३. P तेजोरालियनकम्म । ४. A जोनिमुक्कई; P जाएवि मुक्काई । ५. AP सिहि दिण्णा सिहिदहि ।।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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