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महापुराण
[४७.७.७
धत्ता-इय परंसिविणयमालियं
पइणो तीए सिट्टेयं
जयरामाइ णिहालियं ॥ तेण वि फल व दिद्वयं ॥७॥
दयाभावजुत्तो 'तुम चारुपुत्तो। हले होहिदीसो अणीसो मुणीसो। परस्सोवयारी जिणो णिजियारी। तओ तम्मि काले महातूररोले। तिलोयस्स पुजा
सई का वि लज्जा। मई कति बुद्धी सिरी संति सिद्धी। ससिंगारभारा पघोलंतहारा। गुणुतालभावा सकंचीकलावा। तुलाकोडिपाया विइपणंगराया। दिही दोहरच्छी परा का वि लच्छी। पवण्णा णिवासं जिणंचाह पासं। कया गब्भसुद्धी इमोहिं महिद्धी। धणेसो पहिट्ठो हिरणं पवुट्ठो। रिऊमासमेरं
धरेउसमेरं। अमंदो णिवंदो चुओ पाणइंदो। घचा-फग्गुणमासे पत्तए पक्खे ससियरदित्तए ।
णषमीदियहि पवित्तए देवं मूलणक्खत्तए ॥८॥ घत्ता-इस प्रकार जयरामाने स्वप्नमालिका देखी। उसने पतिसे कहा । उन्होंने भी उसके फल का कथन किया |
कि तुम्हारा दयासे युक्त सुन्दर पुत्र होगा । हे हला, अनीश, मुनीश, दूसरों का कल्याणकारी, शत्रुओंका नाश करनेवाले जिन; तब उस समय कि जब महातूर्य बज रहा था, त्रिलोककी पूजनीय सती कोई लज्जा, (ह्रो), कान्ति, मति ( बुद्धि ), सिद्ध होती हुई श्री, शृंगारके भारसे दबी हुई, हारको आन्दोलिस करती हुई लक्ष्मी, गुणोंसे ऊंचे भाववाली कांची कलापसे युक्त, पेरोंसे घुघरू पहने हुए अंगराग विकीर्ण करती हुई लम्बी आंखोंवाली कोई श्रेष्ठ लक्ष्मी जिननाथके निवासस्थान पर पहुंची। इनके द्वारा महान् ऋद्धिवाली गर्भशुद्धि की गयी। छह माइकी अपनी मर्यादा तक कुबेरने प्रसन्नतासे धनकी वर्षा की । अमन्द मनवन्दनीय प्राणत इन्द्र-च्युत हुआ और।
पत्ता-फागुन माहके कृष्णपक्षको नवमोके दिन मूलनक्षत्र में ||८||
८. A परि । ९. A सिट्टियं । १०. A°दिट्टियं । ८. १. AP तुहं । २. दूरराले । ३. A सुई कावि; P सयं कावि । ४. P जिणंबाय । ५. P सुवपणेण बुहो।
६. A रमतो सभेरं । ७. Pणिमंदो। ८.K प्राणाईदो। १. देउ ।