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________________ १४२ महापुराण [४७.५.४मुच्चाहलमंछियसुग्गीवहु । इक्खाउहु रायहु सुम्गीवह। वासषकुलिसु व मझे खामहि जसरामहि देविहि जयरामहि । विखंसियदुखरमणसियसरु । होसइ देख णमतिस्थंकर। जाहि ताई तुहुं दुजण जूरहि चितिर्य सयल मणोरह पूरहि । करि घंग पुरै घर सुहदसणु ता जक्खेण दुक्खविद्धंसणु । णिम्मिच गयर काई वपिणज्जा जहिं मणिकिरणविरोह भिजा। १० भाणुषिंबु तहिं परु किं सीसह ते. रयणि ण वासरु दीसइ। पत्ता-पयगयरंगविहतियं पोमरायमणिपंसियं ॥ ढंका जत्थ बहल्लिया कि सा चंदगहिल्लिया ।५।। कज्जलु णयणि देति हरिणीलहु । आरूसइ किरणावलि कालहु । दंतपंति सैसियतकरोह दगगलि । जितिनायो । भणइ धरिणि सहिय उ सरलच्छउ एंव हि दसण ण धोयवि णिच्छउ । ओयवि घरि मोतियरंगावलि अवर ण बंधेद गलि दारावलि । ५ णीलैंजणेनु ण णिहि गियच्छइ मरगयदित्ति मच्छि दुगुंछइ । कश्यपगोत्रीय शशांकगुप्त नामक, शत्रुओंके प्रांगणमें आशंकाओंसे रहित, गुप्तशशांक, जिसका कण्ठ मुक्तामालाओंसे शोभित है, ऐसे इक्ष्वाकुवंशके राजा सुग्रीवको बजायुधकी तरह मध्यमें शीण तथा यशसे रमणीय जयरामा नामको देवीसे, कामदेवके दुर्धर्ष बाणोंको नष्ट करनेवाले नौवें तीर्थकरका जन्म होगा। जाओ तुम शीघ्र दुश्मनोंको सताओ और चिन्तित समस्त मनोरथोंको पूरा करो। देखने में शुभ सुन्दर नगर बनाओ। तब कुबेरने दुखोंका नाश करने वाले नगरकी रचना की। उसका क्या वर्णन किया जाये ? जहाँ मणिकिरणों के विरोधसे सूर्यबिम्बका तिरस्कार किया जाता है वहां दूसरेके विषय में क्या कहा जाये ? तेजके द्वारा वहां न रात जान पड़ती है, और न दिन। यत्ता-चरणों में लगे हा राग (लालिमा) को नष्ट करनेवाली पचरागमणियोंको पंक्तिको जहां वधू आच्छादित कर देतो है, क्या वह चन्द्रमाके द्वारा अभिभूत है? ( क्या चन्द्रमारूपी ग्रह उसे लग गया है ? कोई आंखोंमें काजल लगाती हुई, हरिनील और काले मणियोंको किरणावलीपर ऋद्ध हो उठती है। वह चन्द्रकान्तमणिके किरणसमूह से दन्तपंक्तिको दर्पणतलमें अपनी भ्रान्तिके कारण नहीं देखतो। वह गृहिणो, सरल आँखोंवाली सखीसे कहती है कि इस समय में निश्चयपूर्वक दांत नहीं धोऊंगो । एक और नारी घरमै मोतियोंकी रंगावली देखकर अपने गले में हारावली नहीं बांधतो । अपने स्थापित नोले नेत्रों को नहीं देख पाती और वह मृगनयनी मरकतमणिकी २. A णव । ३. P दुर्राह । ४, न तह घरि क्षणय मनोरह । ५. A पुरावक । ६. ? काई पायक । ७. A माणिककिरणयिहि । ८. AP वित्तियं । ६. १, A ससित; P ससिकत । २. P. बढ । ३. A गोलणेत्तु ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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