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________________ १२४ ५ १० पयारह मणहरकहियाई मदवर्णे तवर्णे तवियाई arraataarane ag die झीउ र पेसरु णामझरं भल्लत्रं जाणियउ आराहिवि साहिवि संतमइ roaring मझ जड़ उच्णछिष्णमिच्छत्तहिं तिगुणियदs तिजलहिआव्हरि तीसवासदवरि रमेत्तु विच्छुरिदिसु धत्ता - तहिं सियंगु सुच्छायड महापुराण १३ अविहंग अंगई गहियाई । तुंगई अहं गई स्ववियाई । सुहसीलई सोलह भावगउँ । लइ लडं पद्ध तित्थयरु | परिछेहु छेय आणियः । जीविषे संप्रावि दिव्वगइ | विठाण संबद्धरई । संपुष्णपुण्णफलभुतिवहि । तसं खपक्खणीसासयरि । आहारु चार वहिं अवयरिष्व । जहिं णिद्दिलु घषलु जणु सुजसु । वइजयंति सो जाय || पेक्खिवि पेद्दणी भरह पुष्पदंताणी || १३| 4 % [ ४५.१३.१ इय महापुराणे विसद्विमापुरसाकारे महाकपुरसत्रिरह महा मध्यमाणुमणि महाकचे परमणादव जयंत संभवो णाम 'पंचचाळीसमो परिच्छे जो समझो ॥ ४५ ॥ १३ केवलज्ञानियों द्वारा प्रतिपादित अविकल ग्यारह अंग उसने स्वीकार कर लिये । मदको सन्तप्त करनेवाले तपमें उन्होंने उसके ऊंचे माठों अंगोंको नष्ट कर दिया। उद्दाम कामको नष्ट करनेवाली शुभशील सोलह कारण भावनाओंका ध्यान किया। उनका रतिप्रसार लोन और क्षीण हो गया, तो उन्होंने तीर्थंकरत्वका बन्ध कर लिया और उसे पा लिया । श्रेष्ठ नामप्रकृतिको जान लिया और उत्तम पुरुषकी आयुका बन्ध कर लिया । शान्तमति वह आराधना और साधना कर दिव्यगति और जीवनको प्राप्त हुआ। जिसने निर्वाणके स्थानमें अपनो रति बाँधी है ऐसे वह मुनि अवग्रह स्वर्ग (वैजयन्त विमान में ) उत्पन्न हुए। जहाँ मिध्यात्वरूप ग्रह नष्ट हो गया है और जो सम्पूर्ण पुण्यफल की भुक्तिको वहन करता है, जहाँ तँतोस सागर प्रमाण आयु होती है, तेंतोस पक्षों में श्वास लिया जाता है, और तैंतीस हजार वर्षमें जहाँ सुन्दर आहार किया जाता है। जहाँ दिशाओंको विच्छुरित करनेवाला एक हाथ प्रमाण शरीर होता है और जहां मनुष्य मानो यशके समान सब ओरसे धवल होता है । त्ता - ब उस वैजयन्त विमानमें सुन्दर कान्तिवाला वह श्वेतांग देव हुआ, जिसे देखकर पुष्पदन्त (सूर्य-चन्द्र ) की भार्या ( प्रभा ) प्रभासे हीन हो गयी ||१३|| इस प्रकार प्रेसर महापुरुषोंके [[णाकारोंसे युक्त महापुराण में महाकवि पुष्पदन्या द्वारा विरचित और महामन्य मास द्वारा अनुमत्र महाकाव्य का एद्मनाम वैजयन्त उत्पत्ति नाम का पैतालीस परिच्छेद समाप्त हुआ ॥ ५ ॥ १३. १. AT मणहरणिहियाई । २. Pomits this foot | ३. A सोलट । ४, AP add after this : भाषेषु विपावण ५. Pीउ लोपन । ६. रहपसह । ७ AP संपादित । ८. APA 'मिले but gloss ग्रहे । १०. A P विस्परियदिसु । ११. A वसु । १२. A पहाणी । १३. P पंचालीसमो ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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