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________________ परिषयात्मिका भूमिका ३७ किया। व्यापारीमे कहा कि देवने जो फल दिये थे के समान हो गये हैं। कि रावा अपनी मांगके लिए आग्रह करता रहा, तो ज्योतिषीने कहा कि राजा उन फलोंको पा सकता है यदि वह उसके साथ एक द्वीपके लिए पलता है। राजाने मंजूर कर लिया । वह व्यापारी के साथ गया, उसने उसे चट्टानपर रखा और मार बाला । मृत्युके बाद सुभौम नरक गया। अरके शासनकालमें बलदेव, वासुदेव कोर प्रतिवासुदेवका छठा इल उत्पन्न हुआ। उनके नाम पे नन्दीसेन, पुण्डरीक और निशुम्भ । विस्तारके लिए ताकिका पेलिए। ___LXVII-मल्लिकी जीवनीके लिए तालिका देखिए। इसके शासनकाल में मौवें पक्रवतों पप हुए । विस्तृत जीवनीके लिए तालिका देखिए । यह मल्लिनाथके शासनकालमें हुआ कि बलदेव, वासुदेव और प्रतिवासुदेवका साना दल अत्पन्न हुआ। जिनके नाम है मन्दिमित्र, दत्त और पलि 1 विस्तारके किए पालिका देखिए। परिशिष्ट औमपुराणोंमें वेसठ शलाका पुरुषोंकी जीवनियोंके परम्परागत विस्तारमैं जो एकरूपता वे दी गयो है, और विमकसूरिमे अपने 'पउमरिस' में जो संकेत दिया ई (पृ. ११ पर उपत है ) मे मुझे यह विचार दिया कि मैं मुविषयानक शीर्षकोंके रूपमें सभीको मुख्य बातोंको मंकित कर दें। इसलिए में इस जिल्बमें पांच तालिकाएं दे रहा है। तालिका एकमें, दिगम्बरोंकी परम्परा अनुसार तीर्थंकरोंको प्रतिमालकि विवोंको दिया गया है। मैंने यह तालिका, श्री पी. एच. खरेकी मराठी पुस्तकसे जो बहुत मूल्यवान् है, ली है, इसलिए कि मेरी तालिका में जानकारी है, वह गुण मद्र और पुष्पदम्तके उस बाभकारीसे मिलनी चाहिए, जो उन्होंने अपने पुराणोंमें पी है, इसके लिए मैंने श्री बरेको सालिका घोड़ा फेरबदल किया है। दूसरी तालिका, तीर्थकरोंके पूर्वजन्म, अम्भस्थान आविका विवरण देती है। तीसरी वालिका विभिन्न ठोकरोंक मणघरोंकी सूची है। बौधीमें चक्रवतियों के बारेमें सूचनाएं। पापी तालिका बलदेवों, मासुदेवों, प्रतिवामदेबोकबारे में जानकारी है। दरअसल मेरी जानकारीका स्रोत बिसेनका बादिपुराण, गणमटका उत्तरपुराण और पुष्पदन्तका महापुराणहै। ये रचनाएं, मैं आषा करता है कि विगम्पर परम्पराका प्रतिनिधित्व करनेवाले सर्वोत्तम स्रोतोंमें से एक है, यदि ने सर्वोत्तम नहीं है तो एक या दो स्पानोपर मेमे श्वेताम्बर परम्पराका उपयोग किया है, क्योंकि उनको जानकारी देने में महापुराण समर्थनहीं था या फिर में उसमें सामग्री देखने में समर्थ नहीं हो सका। मैं पाठकों के प्रति मत्यन्त तक होगा यपि बेबनपयुक्तताबों और कमियों को ध्यान का सके, मधम्यवादके साथ उनपर विचार करूंगा। मोरोजी पाडिया कालेज पूना अगस्त५१४. -पी. एस. वैध
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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