SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महापुराण [४२.१०.७ जय संथ मयशंथ पिगंध सिवपंथ। जय दित्त तमैचत्त अणिमित्तजगमित्त। जय राय रिसिरीय णीराय णिम्माय। जय णंद रुइरंद- मुहयंद बुहयंद। मुजगिद भूमिंद खयरिंद तियसिंद। णित्तंद णिहंद मुणिवंदसयवंदै । जयणाह णिण्णाह णिवाह दुम्वाह । समयार सिंदूर मंदारणियार-। सुरचित्तसियरत्त- सयवत्त सुविचित्त । कुसुमोहकयसोह णिल्लोह णिम्मोह । जय तिक्ख दुणिरिक्ख- तवपक्खधुवसोक्ख-। फलसाहि महुं देहि सुसमाहि लहुं वोहि । घत्ता-इय वंदिउ सुमइ जीहासयहिं सहसखें । चउदारहिं सहिउ किउ समवसरणु ता जक्खें ।।१०।। मइंदासणं लच्छितूंगत्वासं वरं आयवत्तत्तैयं चंदभासं । सुरुम्मुक्कसेलिंधविट्ठी विसिट्ठा पडती सराणीसरोलि व्व दिट्ठा। ण सा तस्स काही समारं वियारं मणुम्मोहया ते हया जेण दूरं । स्वस्थ, मदका मन्थन करनेवाले निग्रन्थ शिवमार्ग, आपकी जय हो। हे प्रदीप्त अन्धकारसे त्यक्त, विश्वके अकारण मित्र, आपको जय हो । हे राजर्षिराज नीराग और मायासे रहित, आपकी जय हो। हे आनन्दमय कान्तिसे महान् मुखचन्द बुधेन्द्र, आपकी जय हो । हे भुजगेन्द्र भूपेन्द्र, विद्याधरेन्द्र, देवेन्द्र, नित्येन्द्र निर्द्वन्द्व, सैकड़ों मुनिवरोंसे वन्दनीय, आपकी जय हो। हे नाथरहित निर्बाध और दुधि आपको जय हो । हे समाचार ( शान्त आचारवाले ) सिन्दूर मन्दार कणिकार देवोंके द्वारा फेंके गये श्वेत रक्त कमलोंसे सुविचित्र कुसुमसमूहोंकी शोभावाले आपकी जय हो । हे तीक्ष्ण और दुर्दर्शनीय तपरूपी वृक्षको शाश्वत सुखरूपी फलशाखावाले आपको जय हो। आप मुझे ( कविको ) शीघ्र सुसमाधि और सम्बोधि प्रदान करें। पत्ता-- इस प्रकार देवेन्द्रने अपनी सैकड़ों जिह्वाओसे सुमतिकी वन्दना की। और इतने में यक्षने चार द्वारोंसे सहित समवसरणकी रचना कर दी॥१०॥ लक्ष्मीके उच्च निवासवाला सिंहासन, चन्द्रमाको आभावाले श्रेष्ठ तीन छत्र, देवों द्वारा को गयी पुष्पवर्षा, जो कामदेव द्वारा विसर्जित तीर-पंक्तिके समान दिखाई दी। लेकिन वह उनमें किसी भी प्रकारका कामका विकार उत्पन्न करने में असमर्थ थी। क्योंकि वे मनको उन्मादन ३. A तवतत्त । ४. A सिरिराय । ५. P णोमाय । ६. P adds after this : अणवद्द । ७. A तववेक्ख । ११. A तुंगत्तु । २. A आयवत्तं तयं । ३. A सेलंधविट्ठी । ४. P मणुम्मोहयंता हया ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy