________________
-४२.७.१२]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित घत्ता-सुरसीमंतिणिहिं थणथण्णएण वडारिउ ।।
सुमइसमेग्धविउ पहु सुमेई भणिवि हक्कारिउ ॥६॥
७
पुव्वाण गिव्वाणकीलाइ कयसोक्ख कुमरत्तणेणेय वोलीण दहलक्ख । अइऊण ता णवर दणुयारिरायण भभंतगंभीरभेरीणिणाएण । सिंचेवि सुईसलिलधाराणिवाएहिं संमैहि वि णवमालईपारियाएहिं । सवलहिवि कप्पूरचंदणपयारेहिं भूसेवि केऊरहारेहिं दोरेहिं । कलरवतुलाकोडिकंचीकलावेहिं णच्चेवि विब्भमहिं हावेहिं भावेहिं । बद्धो सिरे पटु देवाहिदेवस्स णिविंधकामावहो णिविलेवस्स । अंधाई बहिराई धणविहवहीणाई संपीणयंतस्स काणीणदीणाई । महि भुंजमाणस्स दिव्वाई सोक्खाइं गलियाई पुवाई णवलक्खसंखाई। ता चिंतियं चिंतणिज्जं जिणिदेण रज्जेण मह होउ भववेल्लिकंदेण । तं चयमि तउ करमि संचरमि मग्गेण विसहिंदचिण्णेण जडकसरदुग्गेण । १० घत्ता--गिरिकक्करि पडइ महुकारणि जिह हयकरहउ ।।
रज्जरसेण तिह भणु महियलि को किर ण णिहउ ।।७।। पत्ता-देव-सीमन्तिनियोंके द्वारा अपने दूधसे वृद्धिको प्राप्त तथा सुमतिके लिए समर्पित प्रभुको सुमति कहकर पुकारा गया ॥६॥
सुख उत्पन्न करनेवाली देवक्रीड़ाओं और कौमार्यमें उनके जब दस लाख पूर्व वर्ष बीत गये, तो इन्द्रने आकर घूमते हुए गम्भीर भेरी निनादके साथ पवित्र जलधाराओंकी वर्षासे भिषेक कर, नवीन मालती और पारिजात कुसुमोंसे पूजा कर, कपूर और तरह-तरहके चन्दनोंसे लेप कर, केयूर-हार-दोरों ओर सुन्दर बजते हुए चुंघरुओंवाली करनियोंसे अलंकृत कर, विभ्रमों हाव-भावोंसे नृत्य कर, कामको निरन्तर ध्वस्त करनेवाले निर्लेप देवाधिदेवके सिरपर पट्ट बांध दिया। अन्धे, बहिरों, धनविभवसे हीनों, कन्यापुत्रों और दीनोंको प्रसन्न करते हुए, धरती और दिव्य सुखोंका भोग करते हुए, उनकी नौ लाख पूर्व वर्ष आयु बीत गयी। तब जिनेन्द्रने चिन्तनीयका विचार किया कि संसाररूपी लताका अंकुर यह राज्य मेरे लिए व्यर्थ है। उसे में छोड़ता हूँ, तप करता हूँ और वृषभेन्द्र (ऋषभनाथ,धवल बैल) के द्वारा स्वीकृत जड़ और गरियाल बैलोंके लिए अत्यन्त दुर्गम मार्गसे चलता हूँ।
घत्ता-जैसे हत-करभ ( ऊंट ) मधुके लिए पहाड़के शिखरपर गिरता है, बतायो राज्यके रसके कारण संसारमें कौन नहीं मारा जाता ? ॥७॥
११. P T सुमइ समप्पिय c and gloss in T सुमतिः समर्पिता अतिशयवती येन । १२. P सुम्मा । ७.१. P अविऊण । २. P सिंचेवि सो सलिल । ३. A सम्मोवणिव । ४. परियाएहिं । ५. A गोरेहि।
६. A P णिबंध; T णिज्बंध सातत्यम् । ७. P णववीसलक्खाई।