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________________ मदनजुद्ध काव्य ( संसार से विरक्त हो आत्मिक सुख भोगने लगा । व्याख्या – भगवान् का विवेकको बुलाने का अर्थ है कि सभी जीव स्वयं कल्याण के मार्ग में लगें। कोई भी मोक्ष-पक्ष से विचलित न हो । पहले विवेक शुभभावना रूपी अपनी अन्तरात्मा में रहता था । उसे जब वहाँ मदनराजा की हवा का धक्का लगा, कि वह अविवेकी बहिरात्मा बन जाए, तब उस भेदविज्ञानी सम्यग्दृष्टि ने शीघ्र ही अपनी अन्तरात्मा में शुभध्यान से मन्त्रणा की शुभध्यान ने उसे बतायाअशरणमशुभनित्यं दुःखमनात्मानभावसामिभवं । मोक्षस्य द्विपरात्मेति ध्यायंत सामायिके ।। धर्मपुरी पहुँच गया । वहाँ पहुँचकर उसने तत्काल ही संयम रूपी लक्ष्मी का वरण कर लिया । संयमी बनकर आत्मिक सुखों में रस मग्र हो गया तथा मोह राजाके साथ होने वाले युद्ध में युद्ध का नायक बन गया । ४० दोहा छन्द : जब विवेकु नदि सुणिउ चितवइ अनंगु भग्गहं पिष्ठ न धाय पुरुषहं इहु इ अवाणु । पमाणु ।। ५६ ।। अर्थ--- जब विवेकके नष्ट ( अदृश्य) हो जाने की बात अज्ञानी मदन राजाने सुनी, तब वह विचारने लगा कि भगोड़ों की पीठ पर नहीं दौड़ना चाहिए (पीछा नहीं करना चाहिए) हम जैसे पुरुषोंके लिए यही ( महापुरुषोंके ) वचन प्रमाण हैं । व्याख्या - वसन्त ऋतु के समय सभी संसारी जीवों की आत्मा में मोह से उत्पन्न मदनके राग भाव रूपी अंकुरों ने ऐसा स्थान बना लिया कि जो जीव पत्नी सहित थे, वे तो मोही हुए ही और जो मोहरहित थे वे भी कुमति से सम्बन्ध बनाकर मोही बन गए । निर्मोही, संयमहीनों पर तो मदन का शासन चल जाता है परन्तु निर्मोही संयमी अन्तरात्माओं पर मोहका शासन नहीं चल सकता है। इसलिए विवेक संयमी बन गया । कवि ने इसी तथ्य को स्पष्ट किया । है । अतः मदन राजा विवेक के पीछे नहीं पड़ा । उसने यही विचार किया कि जो पीठ दिखलाता है उसका पोछा नहीं करना चाहिए य: शास्त्रवृत्तिः समरेरिपुर स्यात् यो कण्टकोकनिजमण्डलस्य । तत्रैव शस्त्राणि नृपाः क्षिपन्ति नदीनकानीन शुभाशवेसु ।। वस्तु छन्द : फिरिङ मनमथु जित्ति सुहू देस [[------
SR No.090267
Book TitleMadanjuddh Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuchraj Mahakavi, Vidyavati Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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