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मदनजुद्ध काध्य
छेदु भेदु सबही तिणि पायउ सब स कपटु उठि पंथहि धायड़ ।।२०।। ___ अर्थ—उस कपटने वहाँ न्यायनीतिरूप बहुतसे मार्ग देखे तथा नगरीमें प्रत्येक स्थान पर सभी लोगोंको सुखी देता 1 इसप्रकार सबका छेद-भेद (रहस्य) उसने प्राप्त कर लिया । तब वह कपट नामका दुत सबका समाचार लेकर अपनी नगरीके मार्गकी ओर शीघ्रतासे दौड पड़ा ।।
व्याख्या-उस कपट दूत ने पुण्यपुरीके पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण सभी मार्ग देखे, जो क सथरे थे ! आमाले अंतरंग पथ भी तर्थ, पंचम गुणस्थानके थे । जिनके प्रशम संवेग, अनुकम्मा, आस्तिक्य भक्ति, निर्वेग, वात्सल्य आदि विशिष्ट नाम थे । वहाँकी प्रजाकी आत्मा इन्ही निजी मार्गों पर विचरण करती थी । सभी स्वयं ही अनुशासन पालते थे. कोई भी स्वच्छन्दता प्रिय नहीं थे । स्वच्छन्दता ही सबसे बड़ा अपराध है ! स्वच्छन्दतामें ही सर्व पाप सन्निहित हैं । ऐसे पुरुष यहाँ नहीं थे। यह सब राजा विवेक का ही माहात्म्य है, जो सभी सदैव सुखी रहते
आइ अधम्मपुरी सु पत्तउ जाइ जुहारु मोह-सिङ किमउ । मोह बुलाइ बात तिसु पुच्छइ ।।२१।। ___अर्थ---वह दौड़ता हुआ आकर अधर्मपुरी पहुँचा । वहाँ उसने राजा मोहको जुहारु (नमस्कार) किया । तब मोहराजाने उसे बुलाकर सब बाते पूछी "कहो कपट, राजा विवेक किस स्थान पर ठहरा है, उसका हालचाल कैसा है?"
व्याख्या-सज्जनोंके मनमें शंका नहीं होती है क्योंकि उनका आचरण सदा पवित्र रहता हैं । किन्तु दुर्जनोंके मनमें बराबर शंका बनी रहती है । राजा मोहके विवेकके विषयमें हमेशा शंका बनी रहती थी। वह उसका हालचाल जाननेके लिए उत्सुक बैठा था तभी कपट दूत वहाँ वापिस आ गया । राजा मोह की राजधानी अधर्मपुरीके सिवाय दूसरी क्या हो सकती है? राजा मोहने अधीरता पूर्वक कपट से पूछा “कहो वह विवेक किस स्थान पर रहता है? वह स्थान कहाँ है?" दोहा :
पासि बुलायउ कपटु सब पूछण लागउ बात । कहाँ निवर्ति विवेकु कहं का तिन्ह की कुसलात ।।२२।।