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मदनजुद्ध काव्य
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जो स्वरूप है, उसको कभी न भूले। उसके लिए चार आचरण ही शरण हैं । पंचाचारों को पालने वाले ही यथार्थ साधु हैं। स्वप्न में कभी भी इनको मत भूले । जैनधर्म कथित द्रव्य छह ही है । न अधिक है न कम । इन्हें यथार्थ समझें । आगम में सात नय हैं, इनको यथार्थ पूर्वक जानने से ही वस्तस्वरूप समझ में आता है । इसमें कोई संशय नहीं । आगम में पाँच समिति तीन गुप्ति रूप आठ प्रवचनमाताएँ कही गई हैं। इनके द्वारा आचरण की पूर्ण शुद्ध होती है, इसे कभी न भूले । शील की नववाड़ हैं, इनसे ब्रह्मचर्य की रक्षा होती है । जैसे खेत में धान की रक्षा बाड़ से होती हैं, उसी प्रकार मन्मथ कथा-त्याग पेट भर भोजन त्याग आदि उल्लिखित हैं । सो इनको दृढ़ता पूर्वक पालन करे । दश लक्षणधर्म हो आत्मा का स्वभाव हैं, इनसे ही आत्मा की पहचान होती हैं । इस प्रकार अन्य भी साधु के कर्तव्य हैं, जो परमात्मा बनने में सहायक हैं । इन्हें कभी न भूले ।
समिड़ पंच तिष गुत्ति पंच महवय चारित परि संजमु सतरहभेय भेय बारह सपु आचरि पडिमा दुइ दस बहतु सहहु बावीस परीसहु भावण भाइ पचीस पाप सुत तजि नव वीसहू तेतीसा सायण टालियहु जिण चवीसहं श्रुति करहु rate urs भडु मोहु जिणि इम सु साथ शिवपुरि सरहु ।। १५६ ।।
अर्थ – पाँच समिति, तीन गुप्ति और पाँच महाव्रत रूप में तेरह प्रकार के चारित्र का पालन करो । संयम को उसके सत्तरह भेदों सहित धारण करो और तप के बारह भेदोंका आचरण करो । बारह प्रतिमा धारण करो तथा बाइस परीषहों को सहन करो । पच्चीस भावनाओं की आराधना करो । पाप के सूत्र २९ हैं । उनको छोड़ो, ३३ असाताओं को अपने मार्ग से दूर करो । २४ तीर्थकरों की स्तुति करो! मोह भट की २८ प्रकृतियाँ हैं, उन पर विजय प्राप्त करो। इस प्रकार की साधना करके शीघ्र ही मोक्षपुरी को प्रस्थान करो 1
व्याख्या -- यहाँ साधु के चारित्र का कवि ने अपने शब्दों में प्रभु के नाम से वर्णन किया है। पाँच समिति तीन गुप्ति और पाँच महाव्रत, इस ९३ प्रकार के चारित्र का पालन करना साधु का मूल चारित्र हैं । संयम के अपहृत और उपहृद दो भेद हैं। अपहृत संयम के १७ भेद हैं। यह संयम ही मुनि का धर्म है। तप दो प्रकार का है -- १. बहिरंग