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________________ ८७ मदनशुद्ध काव्य यह विश्वास दिलाना । १०. मोहके अभाव में सब कर्मों का अभाव रूप मोक्ष अवश्य ही होगा । यह दृढ़ निश्चय करानेके लिए विवेकने मोह पर चढ़ाई की । पड़ी छन्द : णिवाण मय प्रगटाण कज्जि विव्वेक सुभदु तव चडिङ सज्जि । जब ढोव दीयउ तोंग जाइ मुहू चलिउ तब मोहराइ । ११२८ ।। अर्थ – निर्वाण मार्ग प्रकट करनेके लिए विवेक सजकर चला । रणभूमिमें पहुँचकर उसने भूमिमें पड़े हुए मोहको जोर से धक्का दिया तब मोह राजा मुखमोड़कर वहाँसे चला गया । व्याख्या - निर्वाण मार्ग अभी तक मोहके कारण अवरुद्ध पड़ा था । भगवान आदीशकी आज्ञासे वीर विवेक अपना बल तैयार कर रणांगण में पहुँचा । अर्थात् आगे अनिवृत्ति करण, सूक्ष्म - साम्पराय गुणस्थान में चढ़ा | वहाँ शुक्लध्यानका बल बढ़ाया । वहीं रणांगण में चढ़ना कहलाता है। परिणामों की शुद्धिसे मोहका नाश होता है यद्यपि दसवें गुणस्थान तक लोभ वीर हैं और ग्यारहवें गुणस्थानमें उपशम (अनुदय) रूप है। उसका उदय न हो इसके लिए ऋषभदेव ने मंत्र दिया । जिससे विवेक ध्यानमें मन हुआ । उपशम रूप मोह पड़ा हुआ था । विवेकने उसे अपने ध्यान की ठोकर मारी जिसके कारण वह वहाँ से भागा । देखिय मदनि जब खिसतु मोहू तब अप्पु चलिउ मनि करिवि छो ये दोनढं क्षुक्किय काल कंधि बै मिडिय रणंगणि फोज बंधि ।। १२९ ।। अर्थ- मदन ने मोहको खिसकते देखा तब मदन भी अपने मनमें क्षोभ करता हुआ रणसे चला । वे दोनों रणसे आगे कलिकालके कन्धे पर चढ़कर चले और आगे चलकर फौज (सेना) का बन्ध (व्यूह ) बाँधकर रणांगण में आकर भिड़ पड़े (लड़ने लगे) । व्याख्या -- मोहको भागते देखकर मदन भी हतोत्साहित होकर उसके पीछे भागा परन्तु कुछ कालमें पुनः सावधान होकर वे दोनों उदयमें आ गये अर्थात् विवेक उपशम श्रेणी में चढ़कर पुनः नीचे आ गया। अभी मोक्ष मार्ग खुलने में कुछ समय शेष हैं। अतः तीव्र उदयमें आ गया अर्थात् सातवें, छठवें, गुणस्थानमें आ गया। जो विवेकी भव्य जीव है, वहीं इसके पूर्णरहस्यको अच्छी तरह समझ सकते हैं । कविने सुन्दर शब्दोंमें
SR No.090267
Book TitleMadanjuddh Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuchraj Mahakavi, Vidyavati Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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