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लघुविद्यानुवाद
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प्रत इस महामन्त्र की समस्त मातका ध्वनियाँ निम्न प्रकार हुई। अआ इ ई उ ऊ ऋ ऋ. ल ल ए ऐ ओ औ अ अ. क् ख् ग् घ् ङ् च् छ् ज् झ् ञ् ट् ठ् ड् ढ् ण् त् थ् द् ध् न् प् फ् ब् भ् म् य र् ल व श ष स ह.' उपर्युक्त ध्वनियाँ ही मातृका कहलाती है । जयसेन प्रतिष्ठा पाठ मे बतलाया गया है
अकारादिक्षकारान्ता वर्णा प्रोक्तास्तु मातृकाः।
सृष्टिन्यास स्थितिन्यास-संहृतिन्यासतस्त्रिधाः॥३७६॥ अर्थात्- प्रकार से लेकर क्षकार [क+ष+अ] पर्यन्त मातृका वर्ण कहलाते है।
इनका तीन प्रकार का क्रम है --सृष्टि क्रम, स्थिति क्रम और सहार क्रम ।
णमोकार मन्त्र मे मातृका ध्वनियो का तीनो प्रकार का क्रम सन्निविष्ट है। इसी कारण यह मन्त्र आत्म कल्याण के साथ लौकिक अभ्युदयो को देने वाला है। अष्ट कर्मों के विनाश करने की भूमिका इसी मन्त्र के द्वारा उत्पन्न की जा सकती है। सहार क्रम कर्म विनाश को प्रकट करता है। तथा सृष्टि क्रम और स्थिति क्रम आत्मानुभूति के साथ लौकिक अभ्युदयो की प्राप्ति मे भी सहायक है। इस मन्त्र की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह भी है कि इसमे मातृका ध्वनियो के तीनो प्रकार के मन्त्री की उत्पत्ति हुई है। बोजाक्षरो की निष्पत्ति के सम्बन्ध में बताया गया है 'हलो बीजानि चोक्तानि, स्वरा. शक्तय ईरिता" ।।३७७।। अर्थात ककार से लेकर हकार पर्यन्त व्यजन बीजसज्ञक है और अकारादि स्वर शक्तिरूह है। मन्त्र बीजो की निष्पत्ति बीज और शक्ति के सयोग से होती है।
सारस्वत बीज, माया भवनेश्वरी बीज, पथ्वि बीज, अग्नि बीज, प्रणव बीज, मारुत बीज, जल बीज, माकाश बीज आदि की उत्पत्ति उक्त हल और प्रचो के सयोग से हुई है । यो तो बीजाक्षरो का अर्थ बीज कोश एव बीज व्याकरण द्वारा ही ज्ञात किया जाता है, परन्तु यहा पर सामान्य जानकारी के लिए ध्वनियो की शक्ति पर प्रकाश डालना आवश्यक है।
अ-अव्यय, व्यापक, आत्मा के एकत्व का सूचक शुद्ध-बुद्ध, ज्ञान रूप शक्ति द्योतक प्रणव बीज का जनक ।
पा-अव्यय शक्ति और बुद्धि का परिचायक, सारस्वत बीज का जनक, माया बीज के साथ कीति धन और आशा का पूरक ।
इ-गत्यर्थक, लक्ष्मी प्राप्ति का साधक, कोमल कार्य साधक, कठोर कर्मों का बाधक व ह्री बीज का जनक।
ई-अमृत बीज का मूल कार्य साधक, अल्पशक्ति द्योतक, ज्ञान वर्धक, स्तम्भक, मोहक, जम्भक ।