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________________ ३० लघुविद्यानुवाद तेल के धूप का प्रिय, दुर्जन प्रिय, रौद्र कर्म का धारण करने वाला, यमादि देव से पूजित । ऐसा 'न' कार का लक्षण है। प -असित वर्ण, पुल्लिग, जाति पुष्प के गन्ध का प्रिय, दस सिर वाला, बीस हाथ वाला, अनेक आयुधो के धारण करने वाली मुद्रा से युक्त, करोड योजन विस्तार वाला, द्विगुणित आयाम वाला, मन्त्र, कोटि योजन शक्ति का धारी, गरुड वाहन वाला, कमल का आसन, सर्वाभरण भूषित, सर्प का यज्ञोपवित धारी, सर्व देवता से पूजित, सर्व देवात्मक, सर्व दुष्टो का विनाशक, (अलयानिल) चन्द्रादि देवता से पूजित । ऐसा 'प' कार का लक्षण है। फ -बिजली के समान तेज वाला, पुल्लिग, पद्मासन, सिह वाहन, दस करोड योजन आयाम वाला, पाँच करोड योजन का विस्तार वाला, दो भुजा वाला, पशु चक्र के आयुध वाला, केतकी के गन्ध का प्रिय, सिद्ध विद्याधर से पूजित, मधुर स्वाद वाला, व्याधि विप, दृष्ट, ग्रह विनाशन, सर्व महारति, महादिव्य शक्ति, शान्तिकर, ऐशान्य देव से पूजित । ऐसा 'फ' कार का लक्षण है। ब -इगिलि का भ, दस करोड योजन का उत्सेध, उसका आधा विस्तार, मुक्ति का भरण धारण करने वाला, जनेव धारी, दिव्या भूषित, आठ भूजा वाला, शख, चक्र, गदा, मूसल कॉडकण, शरासन, तोमर आयुष को धारण करने वाला, हस वाहन वाला, कुवलयासन का धारी, वेर फल का स्वादी, घन स्वर वाला, चम्मा के गन्ध वाला, वश्याकृष्टि प्रसग प्रिय, कुबेर देव से पूजित । ऐसा 'ब' कार का लक्षण है। भ -नपुसक, दस हजार योजन उत्सेध, पाँच हजार योजन विस्तीर्ण, ( विस्तार वाला ), निष्ठर मन वाला, कठोर, रुक्ष, स्वाद प्रिय, शीघ्र गति गमन प्रिय ऊपर मुख वाला, तीन नेत्र वाला, चार भुजा वाला, चक्र, शूल, गदा, शक्ति के पायधो को धारण करने वाला, त्रिकोणासन वाला, व्याघ्र वाहन, लोहिताक्ष तीक्ष्ण, उर्ध्व केश वाला, विकृत रूप वाला, रौद्र काति, अर्द्ध खिले हुये नेत्र, शरण सिद्धि कर, नैऋत्य देव से पूजित । ऐसा 'भ' कार का लक्षण है। म -उगते हये सूर्य के समान प्रभा, अनन्त योजन प्रभा शक्ति, सर्व व्यापि, अनन्त मुख, अनन्त हाथ, भूमि, आकाश, सागर, पर्यन्त दष्टि, सर्व कार्य साधक, अमरी करण दीपन सर्व गन्ध माल्यानुलेपन से सहित, धूप चरु का क्षत प्रिय, सर्व देवता रहस्य करण प्रलयाग्नि शिखि काति से युक्त, सर्व का नायक, पद्मासन, अग्नि देवता से पूजित । ऐसा 'म' कार का लक्षण हुआ। ___ य -नपुसक, भूमि, आकाश, दिशा विशेष वाला, सर्व व्यापि, अरूपी, शीघ्र, मन्द गति यक्त, प्रमोद से युक्त, व्यभिचार कर्म प्रिय, सर्व देवता अग्नि, प्रलयाग्नि तीव्र ज्योति, सर्व विकल्प वाला, अनन्त मुख, अनन्त भुजा, सर्व गर्भ करता, सर्व लोक प्रिय, हरिण व हन, वत्तासन, अजन के समान वर्ण वाला, महामधुर ध्वनि से युक्त वायव्य देवता से पूजित । ऐसा 'य' कार का लक्षण है।
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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