________________ लघुविद्यानुवाद 681 नोट -ध्यान रहे कि शुक्ल ध्यान का ह्री को छोडकर बाकी पीली, लाल, काली, जो भी वर्ण का ध्यान करने का प्राया है, उस वर्ण के ह्री को शत्रु के हृदय मे ध्यान करे, मारण कर्म के लिये शत्रु के नाभि मे ध्यान करे / मालामिमा स्तुतिमयीं सुगुरणां त्रिलोको / बीजस्य यः स्वहृदये निधयेत् क्रमात् सः // अङ्कऽष्ट सिद्धिर वशा लठतोह तस्य नित्यं महोत्सव पदं लभते क्रमात सः // 16 // अर्थ :-जो मनुष्य त्रैलोक्य बोज रूप, अच्छे गुण वाली, स्तुति रूपी इस माला को तीनो काल अपने हृदय मे धारण करता है, उसके गोद मे पाठो सिद्धिया अवश्य बनकर नित्य ही आती है और क्रम से मोक्ष पद की प्राति कराती है / 16 / सोना चान्दी बनाने के तन्त्र (1) स्वर्ण माक्षिक 8 मासा पारा 4 मासा तावा 4 मासा सुहागा 4 मासा इन सबको मिलाकर 'कुप्पी' मे डाले, फिर अग्नि मे गलावे तो शुद्ध चादी हो। (2) गधक को अोटा कर (गर्म कर) प्याज के रस मे भुजावे 108 बार, फिर उस गधक को चादी के साथ गलावे तो सोना होता है। (3) हिगुल शुद्ध 18 तोला, अभ्रक 32 तोला को एकत्र करके रूद्रवन्ति के रस म घोट कर, चादी के पत्रे पर लेप करके पुट देवे, तो सोना हो। (4) साग बीज एक जात की बूटी होती है। उसके पत्ते की लुगदी में ताबा रखकर अग्नि में फूके तो स्वर्ण बने। (5) गाथा:-नाग फरिणए मुलं, नागण तोए एणगभनागेण / नागण होइ सूवरण धमत पुण्ण जोगेण / / (समयसार जयसेनाचार्य की टीका मे लिखा है)