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________________ लघु विद्यानुवाद __ अब समिधाहुति कहते है। "ॐ ह्रा' इत्यादि मन्त्र के द्वारा हाथ से समिधा की एक सौ पाठ आहुतिया देवे / मन्त्रोच्चारण भी एक सौ आठ वार करे, इसके बाद पूर्वोक्त छह घृताहुति देवे। पॉच तर्पण करे ओर अग्नि पर्युक्षण करे। अग्नि के चारो और दूध की धार देने को पर्युक्षण कहते है / / 52 // अथ लवगाद्यातुयः / / ॐ ह्रा अर्हदभ्य स्वाहा / ॐ ह्री सिद्ध भ्य स्वाहा। ॐ ह्र. सूरम्य स्वाहा / ॐ ह्रौ पाठकेभ्य स्वाहा ॐ ह्र सर्व साधुभ्य स्वाहा / / ॐ ह्री जिन धर्मेभ्यः स्वाहा / ॐ ह्री जिनागमेभ्य स्वाहा / ॐ ह्री जिनालयेभ्य स्वाहा / ॐ ह्री सम्यग्दर्शनाय स्वाहा ॐ ह्री सम्यकज्ञानाय स्वाहा / ॐ ह्री सम्यक चारित्राय स्वाहा / ॐ ह्री जया द्यष्टदेवताभ्यः स्वाहा / ॐ ह्री षोडश विद्यादेवताभ्य स्वाहा / ॐ ह्री चतुर्विशतियक्षीभ्य. स्वाहा। ॐ ह्री चतुदर्शभवन वासिभ्यः स्वाहा / ॐ ह्री अष्टविधव्यन्तरेभ्य स्वाहा / ॐ ह्री चतुर्विध ज्योतिरेन्द्र भ्य स्वाहा / ॐ ह्री द्वादशविधकल्पवासिभ्य स्वाहा / ॐ ह्री अष्टविधकल्पवासिभ्य स्वाहा / ॐ ह्री नवग्रहेभ्य स्वाहा। ॐ ह्री अष्टविध कल्पवासिभ्य स्वाहा / ॐ ह्री अग्निद्राय स्वाहा / ॐ स्वाहा भू स्वाहा / भुव स्वाहा स्व. स्वाहा / एतान् सप्तविशन्ति मन्त्राश्चतुवारानुच्चार्य प्रत्येक लदग गन्धाक्षतगुग्गुलुतिलशालिकुड कुमकर्पूरलाजा गुरु शर्करामि राहुति सरुचा जुहुयात् इति लवङ्गाद्याहुतयः / "ॐ ह्री अर्हदभ्य" इत्यादि सताइस मन्त्रो का चार-चार बार उच्चारण कर हर एक मन्त्र को लोग गन्ध अक्षत-गुग्गुल-कु कुम-कर्पूर लाजा (भुने चावल) अगुरु और शक्कर इनकी सूची से आहूतियाँ देवे / इस प्रकार 108 आहूति देवे / / 53 / / // पूर्ववत् षडाज्याहुति पञ्चतर्पणकपर्युक्षणानि / / 54 // इसके बाद पहिले की तरह छह घृताहुति पचतर्पण और एक पर्युक्षण करे, इनके करते समय पूर्वोक्त मन्त्रो को बोलता जावे / / 54 / / ॥अथ पीठिका मन्त्रः / / ॐ सत्यजाताय नम / ॐ अर्हज्जाताय नम / ॐ परमजाताय नम / ॐ अनपमजाताय नम / ॐ स्वप्रधानाय नमः। ॐ अचलाया नमः। ॐ अक्षयाय नम / ॐ अव्यावाधाया नमः। ॐ अनन्तज्ञानाय नम / ॐ अनन्तदर्शनाय नम / ॐ अनन्तवीर्याय नमः / ॐ अनन्तसुखाय नम / नोरज से नम / ॐ निर्मलाय नम / ॐ अच्छेद्याय नम / ॐ अभेद्याय नम. / ॐ अजराय नम / ॐ प्राराय नमः / ॐ अप्रमेयाय नम / ॐ गर्भवासाय नम / ॐ अविलोनाय
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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