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________________ ५१० लघुविद्यानुवाद ऋषि मण्डल यन्त्र विधि मन्त्र -ॐ ह्रा हि ह ह ह ह ह्रीं ह्र असि पाउसा सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्रभ्यो ह्री नम विधि -ऋषि मण्डल यन्त्र को भोजपत्र पर सुगन्धित द्रव्य से लिखकर हाथ या गले मे वाधने से सर्व प्रकार के रोग, शोक, ऊपरी हवा नष्ट होती है। परकृत विद्या का नाश होता है। सर्व कार्य सिद्ध होते हैं। किन्तु प्रथम ऋपि मण्डल मन्त्र को विधिविधान पूर्वक सिद्ध करे, जैसे प्रथम एक ताम्र पत्र पर अथवा सुवर्ण पत्र पर अथवा चादी के पत्रे पर अथवा कासे के पत्रे पर यन्त्र खुदवाकर शुद्ध कराव, फिर उस यन्त्र को एक सिंहासन पर विराजमान करके, सामने दीप, धूप रखकर उपरोक्त मन्त्र का ८००० हजार जप करे, आठ दिन मे, सयम से रहे, प्राचाम्ल तप करे, ब्रह्मचर्य पाले, मन्त्र का जप समाप्त होने के बाद शुभ दिन मुहूर्त मे ऋपि मण्डल विधान करके दशास आहुती देवे तो मन्त्र के प्रभाव से मन चितित कार्य सिद्ध हो । सर्व उपद्रव मिटे । लक्ष्मी लाभ हो, विशेष मन्त्र का छह महीने तक नित्य ही आचाम्ल तप पूर्वक आराधना करने से स्वय के मस्तक पर अर्हत विव दिखेगा। जिसको अहं त बिम्ब दिख जायेगा उसको निश्चय ही सातवे भव में मोक्ष हो जायेगा । साधक को किसी प्रकार का भय, डाकिनी, गाकिनी, भूत, प्रेत, परकृत विद्या, इन चीजो का उपद्रव कभी नही होगा। वैसे मन्त्र की एक माला फेरकर, स्त्रोत का पाठ करने से ही सर्व प्रकार के रोग, शोक, बाधाएं मिटती है। इस काल मे ये मन्त्र, यन्त्र की साधना कल्प वृक्ष के समान चितित पदार्थ को देने वाला है । विशेप क्या कहे ।। ६८ ।। यन्त्र न० ६६ १२ इस यन्त्र को भोज पत्र पर लिख कर मस्तक पर वाधने से मूठ नहीं लगती। इस यन्त्र का होली की रात्रि मे नगे होकर धतूरे के रस से लिखना चाहिये ।। ६६ ।।
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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