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________________ लक्ष्मी' इद यन्त्रम् । विधि - दीप मालिकाया कृष्ण चतुर्दश्या षष्ठ व्रतः तप कृत्वा पवित्री भूत्वा अष्टगन्ध केन गुरु धूपोत्क्षेपण पूर्वक सदृश पीताम्बर परिधाय स्वर्ण लेखिन्या लिखनीयम् । ततः षट्कोर्णेक कुण्ड कृत्वा अष्टोत्तर शत सख्येयनालीकेर पूगीलवग जाती फल, एलादिक, पञ्चामृतं सार्द्ध पञ्च पञ्च सेर सख्याक अग्नौजुहुयात् । लघुविद्यानुवाद इस यन्त्र को अष्टगंध से भोजपत्र पर लिखकर विधिवत् पूजा करने से और यन्त्र पास मे रखने से मन चितित सर्व कार्य की सिद्धि होती है । शरीर निरोग रहता है । परकृत दुष्ट विद्या का परकोप नही होता । डाकिनी, शाकिनी, भूत, प्रेत, व्यतरादिक की पीडा शात होती है । लक्ष्मी का लाभ होता है ।। ५८ ।। ज्वर नाशक यन्त्र नं० ५६ सहलीं इवीं हीं ॐ हा स्वा हवी होॐ स्वा सःहं / ॐ 細 अ: अ ज् चम् आ ut ह्रीं ॐ हं देवीं ५७६ हा स्वा सः हो । स इस यन्त्र को लिखकर गर्म पानी मे डालकर रखने से, शीत ज्वर शात होता है । ठण्डे पानी मे डालकर रखने से उष्ण ज्वर ज्ञात होता है ॥ ५६ ॥ नोट – जहा बीच मे देवदत्त लिखा है, उस जगह 'स' लिखकर फिर वीच मे देवदत्त लिखे ।
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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