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________________ ५४० लघुविद्यानुवाद पूर्वोक्त प्रकार से षट्कोणाकार यन्त्र रचना करे। पट्कोण के प्रथम करिणका से क्रमश आ, हु, क्षु , ह्री, च, के लिखे, फिर यन्त्र के चारो तरफ मूल मन्त्र लिखे । ॐ क्षु दाह्री मोहय २ मोहनी । श्ली श्ली श्ले श्लै विजये जय जय । रू रू रौ ह कराले वरदे रक्ष २ । भ्रा भ्री भ्रू भ्रौ भ्र चक्र भ्रामय २ । इन बीजाक्षरो को षट्कोण यन्त्र के चारो तरफ लिखे । इस यन्त्र को चादी के ऊपर खुदवाकर, मन्त्र का साढे बारह हजार जप यन्त्र के सामने जप करे, प्रत्येक कार्य के लिये प्रत्येक मन्त्र का साढ बारह हजार जप करे तो क्रमश मोहन, शोषण, विजय उच्चाटन होता है । मन्त्र पहले इसो काव्य मे लिखा है। अथ पंचम काव्य वशीकरणार्थ ॐ ह्री हु हु सुहर्षे ह ह ह ह हिम कुन्देन्दु स काश बीजै । ह्रा ह्री ह्र क्षः सुवर्ण कुवलय नयनेद्विद्रु मा द्रावयन्ती ।। ह हो ह क्ष स्त्रिलोकी अमृत जलधरा वारुण प्लावयन्ती। झा झा ह स सु बीजे. प्रबल बल भया त्राहि मा देवि चक्रे ॥५॥ टीक .हे देवि चक्रे त्व मा त्राहि 'रक्ष २' कस्मात् भयात् । कथ भूते झा झा ह्र स प्रबल बलेति सु बीज भय-नाशके पुन कथ भूते चक्रे हिम कुन्देन्दु सकाश बीजै ध्यात. ॐ ह्रा ह्रो ह्र ह लक्षणे सुहर्षे 'पुन' कथ भूते, ह्रा ह्री ह्र. क्ष सुवर्ण द्विद्र, द्र, द्र, द्र. सर्व जनान योषि तश्च आद्रावयन्ती मोहयन्ती 'पुन.' कथ भूते ह ही ह क्ष पदा कितै. अमृत । जलधरा वारुण त्रिलोकी प्लावयती त्व रक्षत्यर्थ । अथ यन्त्रोद्धार: पूर्ववत् स मूर्तिक षट्कोण चक्र मारभ्य. स बीज कृता ऊपरि ॐ ह्रा ह्री ह ह ह ह ह हैति विलिख्य दक्षिणे ह्रा ह्री ह क्ष द्रु , चेति विलिख्य 'उतरे' च, ह हो ह क्ष त्रिभुवन बीजानि च अधश्च झा झा ह्र, स प्रबल बलेति चेति सलिख्य अमृत वीजेन वेष्टयित्वा जलधरा वारुण प प्लावयन्ती तिध्यातव्येत्यर्थ । मन्त्रोद्धारः ॐ ह्रा ह्री ह्र. ह ह ह ह ह द ह्रा ह्री ह.क्ष द्रावय २ मोहय २ स्वाहा ।
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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