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________________ ५२४ लघुविद्यानुवाद इस यत्र को सुगन्धित द्रव्यो से भोजपत्र पर लिखकर सुगन्धित द्रव्यो से पूजा करे, फिर कन्याकत्रीत सूत से लपेटकर हाथ मे बाधे तो भूत, प्रेत वगेरह दोष दूर होता है । सतान प्राप्ति होती है, सौभाग्य वृद्धि होती है। या मन्त्रागम वद्धिमान वितनोल्लास प्रदार्पणां या चेष्टाशयक्लप्तकार्मरण गण प्रध्वंस दक्षांकुशा । आयुर्वृद्धिकरां जराभयहरं सर्वार्थसिद्धिप्रदां सद्यः प्रत्ययकारिणी भगवती पद्मावती संस्तुवे ॥२६॥ (२६) हे माता तुम मन्त्रागमो से पूजित हो, सर्व प्रकार से वृद्धि, यश, मान, आनन्द, और प्रसन्नता को देने वाली हो, इच्छित कामनाओ को सिद्ध करने के लिये दूसरो के द्वारा प्रयोगित कामण, टोटका आदि से होने वाले उपद्रवो को अकुश मे करने वाली हो, आयुष्य की वृद्धि करती हो, वृद्धत्व और प्रत्येक प्रकार के भय को दूर करने वाली हो, सर्व प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हो, प्रत्यक्ष फल को देने वाली हो, ऐसी भगवती देवी से मै प्रार्थना करता हूँ ॥२६॥ श्लोक नं० २६ विधि नं० २ षट्कोण चक्रमध्ये ॐ लिखित्वा तदुपरी ह्रीं लिखेत् षट्कोरणेषु प्रत्येकमध्ये क्रमशः, कुरू कुल्ले स्वाहा, लिखेत् । एतद् यन्त्र प्रकारं । एतद् यन्त्रं अष्टगंधेन भुर्जपोलिखित्वा, ॐ ह्री देवी कुरू कुल्ले अमुकं कुरू २ स्वाहा, मन्त्रस्य सताष्टवारं जपात मन्त्रस्यसिद्धिर्भवति, शुभयोगे, शुभदिने, शुभवासरे चंद्रबलादि द्धसित्वा, जाप्यं कुर्यात् अष्ट द्रव्येणनित्यं अर्चनां कुरू तर्हि सिद्धिर्भवति । _मन्त्र प्रभावेण कुष्टरोगं, नाशं भवति, कुपस्य लवरणनिरं मृधु भवति सर्प पुष्पमाला भवति, शस्त्रस्य आघातः पुष्पस्यमाला समभवति । अग्नि नीर समं भवति, विषः अमतं सम भवति उष्णकालः शरदऋतु सम भवति, रविकिरणस्य उष्णता चन्द्रकिरणसमशीतलं भवति, नित्यज्वर, एकान्तज्वर, द्वितीयज्वर तृतीयज्वर चतुर्थ ज्वरादि नाशं भवति, सादिकं प्राज्ञामाशेण शीघ्रदुरतरः भवति । इस यत्र को अप्टगध से भोजपत्र पर लिख कर ॐ ह्री देवी कुरू कुल्ले अमुक कुरु २ स्वाहा । इस मत्र का १०८ बार जाप्य करने से मत्र सिद्ध होता है, इस मत्र का जप करने के
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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