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________________ ५१८ लघुविद्यानुवाद सजप्ता कणवीर रक्तकुसुमैः पुष्पैः समं संचितैः सम्मिश्र : घृत गुग्गलौघ मधुभिः कुण्डे त्रिकोणे कृते । होमार्थ कृत षोडशांगुलिसमं वन्हौ दशांशर्जपेत् तं वाचं वचसीह देवि ! सहसा पद्मावती देवता ||२२|| (२२) अच्छी तरह से एकत्र किये गये लाल कनेर के पुष्प व अनेक प्रकार के पुष्पो से जाप्य करके घी, गुग्गल और मधु, गुड की चासनी के साथ होम द्रव्य को सोलह गुल की समिधा से त्रिकोण होम कुड मे दशास होम करे तो उसके मुख कमल मे साक्षात् भगवती निवास करती है, साधक की सम्पूर्ण इच्छा पूर्ण करने के लिये देवी ग्राकाशवाणी करती है ||२२|| श्लोक नं० २२ विधि नं० २ मन्त्र . - हं नामगभितो वलयंदेयं, वलयमध्ये ॐ पार्श्वनाथाय स्वाहा, लिखेत् तद्वाह्य त्ररणं वलयंदेयं, तस्य प्रथमं वलय मध्ये षोडशः स्वरंलिखेत् द्वितीय वलयमध्ये हर हर लिखेत् तृतियवलयमध्ये, ककारात् प्रारंभं कृत्वा क्ष कारप्रर्यतं लिखेत् बाह्य ही कारं त्रिगुणं वेष्टयेत्, एतद्यन्त्र रचना । एतद्यत्रं कर्पूर प्रगुरू, कस्तुरी, कुंकुमादि सुगन्धित द्रव्येण लिखेत् शुभसमयमध्ये, नन्तरं कन्याकत्रितसूत्रेण यन्त्र वेष्टयित्वा भुजायांधारयेत् तहि सौभाग्यादिसुखस्य प्राप्तिर्भवति । विधि :- इस यन्त्र को कर्पूर, अगुरू, कस्तुरी, कु कुमादि सुगन्धित द्रव्यो से जाई की कलम से शुभ समय मे यत्र बनाकर कन्या कत्रित सूत्र से यन्त्र को वेष्टित करके हाथ मे बाधने से सौभाग्यादि सुख की प्राप्ति होती है । विधि नं० ३ श्लोक नं० २२ (२२) इस श्लोक का विधान इस प्रकार है- धूपैश्चदन, इस श्लोक से पूजा करे, लाल कनेर के फूल, गुग्गल, घृत, दस जाति की वस्तुओ को मिलाकर त्रिकोण कुड मे ॐ भूविश्वे, इस मन्त्र के आदि अन्त मे ॐ मौजै मै, इन बोजो को लगाकर होम करे, त्रिकोण होम कु ड बनावे, वह होमकु ड पच्चीस अगुल गहरा सोलह अगुल का त्रिकोण बनाकर तीन रात्रि तीन दिवस दीपमालिका, अथवा होली, अथवा ग्रहण के दिन, एकान्त स्थान मे प्रारम्भ करे, पानी रहित नारियल को चढावे, तो देवो की आकाशवाणी होती है, न सदेह ||२२||
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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