SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 561
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५०० गर्जनोरद गर्भनिर्गत तडिज्ज्वाला सहस्त्र स्फुरत्सद्वज्ञाकुशपाशपंकजधरा भक्त्या भरैरचिता । सद्यः पुष्पित पारिजातरुचिरं दिव्यं वपुबिभ्रती सा मां पातु सदा प्रसन्न वदना पद्मावती देवता ॥ १२॥ (१२) गजते हुये मेघ के अन्दर से निकलने वाली बिजली की हजारो ज्वालाओ से चमकती हुई, वज्र अकुश, नागपाश और कमल पुष्प को, चारो हाथो मे धारण करने वाली, देवो के समूह ही जिनकी पूजा कर रहे है भक्तिपूर्वक, तत्काल खिलते हुये पारिजात के फूल जैसे सुन्दर शरीर वाली, निरन्तर ही मुख पर प्रसन्नता है, ऐसी हे देवी पद्मावती मेरी रक्षा करो ॥१२॥ लघुविद्यानुवाद काव्य नं० १२ ॐ ब्रह्माणी ॐ षोडशदल कमल कार्यं, मध्ये क्ष्म्ल्यू स्थाप्य दले षोडश देव्या । कालरात्री ॐ भगवती, ॐ सरस्वती, ॐ चडी, ॐ चामु डायै ॐ नित्यायै, ॐ मात्यायै, ॐ गाधारी, ॐ गौरी, ॐ घृति, ॐ मति, ॐ विजय, ॐ किर्ती, ॐ ह्री नमः ॐ पद्मावते नम लिखेत पश्चात् यत्रोस्योपरि चतुर्कोण क्षा क्षी क्षु क्ष लिखेत् तदुपरि काव्य लिखेत यत्रस्य प्रष्ट द्रव्येन पूजन कृत्वा, काव्य, यन्त्र, मन्त्र, पठनात् शत्रु भय न भवति, शत्रु उन्मत भवति नाश भवति शत्रुस्य मरण भवति यन्त्र साधन प्रभावात मंत्रात मिरजकाया मत्रित्वा होम कुर्यात शत्रुस्य निश्चयेन मरण भवति । य त्र रचना : फल :-- - द्वादश काव्यस्य बीजं माया शक्तिः पंचविशति अक्षरे मन्त्र ॐ ह्रीं श्रीं प्रौ प्रौ क्लीं क्रौ पद्मावति धरणेंद्र सहिताय क्षां क्षी क्षू क्षः नमः अनेन मन्त्रेण हस्तार्क, वा मूलार्क वा पुष्पार्क दिने पंचविशति सहस्त्रेण २५००० दक्षिण दिशां साधनं कृत्वा कृष्ण पुष्पेन होमं, कृष्ण माला जाप्यं कृत्वा, शत्रुस्य मरणं भवति संग्राम विषये जयं भवति । इस यन्त्र को भोजपत्र पर सुगन्धित द्रव्यो से लिखे अथवा सोना, चादी, ताँबा के पत्रे पर खुदवा कर यन्त्र की प्रष्टद्रव्य से पूजा करे फिर मन्त्र की साधना करे । मन्त्र :- ॐ ह्री श्री प्रौ प्रौ क्लीं क्रौ पद्मावतो धरणेंद्र सहिताय क्षां क्षीं क्षू क्षः नमः इस मन्त्र को काली माला से और काले पुष्प से पच्चीस हजार ( २५,००० )
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy