SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 543
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४८२ लघुविद्यानुवाद (४-५) को विधि :-इस यन्त्र को सुगधित द्रव्यो से कास्य पात्र मे दर्भाग्र से लिख । श्वेत पुष्पो से अष्टोत्तर शत १०८ बार जप करने से, परविद्या मत्र यत्र से रक्षा होती है और उनका छेदन करता है। अभिचार (मारण) कर्म नष्ट होता है। (६) ॐ कार मे देवदत्त गभित करे, फिर उसके बाहर सोलह स्वर लिखे, उसके बाहर ॐ कार को वेष्टित करे, फिर बाहर ॐ कलि कु डाय स्वाहा लिखे । विधि :--इस यत्र को सुगधित द्रव्यो से कासे के पात्र मे लिखकर श्वेत पुष्पो से १०८ बार जपे, श्वेत पुष्प अक्षत नैवेद्य धूप दीप आदि से यत्र की पूजा करे। फिर उस यत्र को पानी से धोकर, उस पानी को भूतादिक से गृहीत रोगाक्रात व्यक्ति को तीन अजुली प्रमाण पिलावे । सर्व ग्रह रोग से निर्मुक्त होता है । श्लोक नं० ७ विधि नं० १ यन्त्र नं. ४ * ॐ हूँ. ॐ - MPOEM अभिचार नाशक यंत्र
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy