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________________ ४६४ लघुविद्यानुवाद श्लोक नं. ४ के यन्त्र मन्त्र ( १ ) क्ला क्ली के अन्दर देवदत्त गर्भित करके, लक्ष कोण मे रेफ स्वस्तिक ज्वाला वाहर सोलह स्वर वेष्टित करे, ऊपर ग्रष्ट दल का कमल बनावे, उस कमल के दला कामिनी रजनी स्वाहा लिखे । मन्त्र :- ॐ ह्रीं श्रां क्रौ क्षीं क्ली ब्लूं द्रां द्रीं देवदत्ता भगं द्रावय २ वश्य मानय पद्मावती श्राज्ञापयति स्वाहा । जिसके वाम पाव की धूलि को ग्रहण करके पुष्प को वाम हाथ मे श्रोर दक्षिण मे ( करे लिखेत) उसके वाम हाथ को दव दे तो १५ इस मन्त्र से लाल कनेर के फूलो १०८ बार मन्त्रीत करके स्त्री के आगे फेकने से द्रवित होती है । ॐ चले चलचित्तं चपले मातंगीरेतो मुंच मंच स्वाहा । २ ॐ नमो काम देवाय महानुभावाय कामसिरि असुरी २ स्वाहा । विधि :- इस मन्त्र से ताबुल अथवा दातुन अथवा पुष्प अथवा फल को २१ बार मन्त्रीत करके जिसको दिया जाये वह वश्य मे हो जाता है । इस मन्त्र से लाल कनेर को १०८ बार मन्त्रीत करके स्त्रियो के आगे ( श्रामयेत ) फेके वह शरण को प्राप्त होती है । १ स्वय के सीधे हाथ मे यन्त्र लिखो, फिर स्त्री के दाया पाव की धूलि लेकर उसके ऊपर दाया हाथ मे रखे पुष्प को सीधे हाथ से मसलते हुए, उसका रस अथवा मसली हुई पाखडियो को उस धूल के ऊपर डालना, मन मे नीचे लिखे मन्त्र का जाप्य करना, इससे मदोन्मत्त ' हुई, स्वय की स्त्री वश में होती है । यन्त्र न० १ देखे । इस यन्त्र को केशर आदि शुद्ध सुगन्धित द्रव्यो से भोज पत्र के उपर लिखकर, उसमे पद्मावती की पूजा करके नीचे लिखे मन्त्र का जाप्य करना, इससे स्वय की मदोन्मत्त स्त्री भी वश मे हो जाती है और जल्दी ही द्रवित हो जाती है, श्राज्ञाकारिणी हो जाती । यन्त्र न० २ देखे । २ इस मन्त्र से करणेर के फूलो को अभिमन्त्रीत करके पुरुष के श्रागे फेकने से पुरुष स्खलित हो जाता है ।
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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