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________________ लघुविद्यानुवाद ४६१ इस चतुर्थ काव्य के यन्त्र मन्त्र व काम को सुगधित द्रव्य से लिखे, भोजपत्र अथवा सोना, चादी; ताबा के ऊपर लिखकर पास में रखने से स्थान लाभ होता है । राजा प्रसन्न होता है। शत्र का नाश होता है और स्त्री पुरुष वश मे होते है। मन्त्र का १०८ बार जाप पूर्व दिशा मे मुख कर, लाल माला से, लाल आसन पर बैठकर जाप करे। यंत्र नं. ४ भृगीकाली कराली परिजन सहिते चण्डि चामुण्डि नित्ये। भ्रः भे झाँ झीँ झ प्रचण्ड स्तुति शात मुखरे रक्षमा देविपद्मा। भ भी भी Dosb क्षा क्षी -क्षाक्षी रक्षक्षणा क्षरिपु निबहे ही महा मन्त्र वश्य। तूं Thes Het 28 Lekeeek संकट निवारक यंत्र श्लोकार्थ मन्त्र विधि नं०३ १४) मन्त्र विधि :--श्लोक के अन्दर कहे हुए मन्त्रो का उद्धार करते है प्रथम, यहां तीन देवि जिसमे पहली भृगी नाम की देवि, उसकी चडी सखी है, इन्होने मन्त्र के रूप को धारण किया है, उसका वर्णन करते है। ॐ ह्री भृगी क्षा, ॐ ह्री भृगी क्षी, ॐ ह्रीं भृगी शू, ॐ ह्री भृगी क्षः।
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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