________________
लघुविद्यानुवाद
४२१
विधि :--इस विद्या का १००८ श्वेत फूलो से श्री पार्श्वनाथ के चैत्यालय मे भगवान के सामने जप
करे, तो, सर्व मन्त्र विधा की सिद्धि होती है। स्वप्न मे शुभाशुभ होने वाली भविष्य को कहती है। ॐ नम चडिकाये ॐ चामु डे उच्छिष्ट चडिलिनि.- ..."अमुकस्य हृदय कित्वा मम हृदय प्रविशाय स्वाहा। ॐ उच्छिष्ट चडालिनोए... . अमुकस्य हृदय पीत्वा मम हृदयम् प्रविशेतत्क्षणादानय स्वाहा।
ॐ चामु डे अमुकस्य हृदय पिवामि । ॐ चामुडिनी स्वाहा । विधि .-बालू की मूर्ति बनाकर अक्षुणता से उपरोक्त मन्त्र का जाप करे, फिर होम करे, सर्व
रसिणवास कुण। मन्त्र :-ॐ उंतिम मातंगिनी अप (इ) विस्सेपइ कित्ती एइ पत्त लग्नी चंडालि
स्वाहा ।। ॐ ह्रह्रीं ह्रहः । एकांतर ज्वर मंत्र्य तांबू लेन सह देयम् ॥ विधि .--इस मन्त्र से ताबूल (पान) को २१ बार मन्त्रीत कर रोगी को खिला देवे तो एकात ज्वर
का नाश होता है। मन्त्र :-ॐ ह्रीं ॐ नागाकर्षणं । ॐ गः मः ठः ठः गति बंध ह्रीं ह्रीं द्रद्रः ॐ
देव २ मुख बंध २ ॐ ह्रीं फट् क्रों प्रोच्छि २ भी ठः ठः ठः कुंडली करणं । ॐ लोल ललाटः घट प्रवेशः ॐ यहः विसर्जनीयं श्रोष्ठ, कंठ, जिह्वा, मखखिल्लउ तालु खिल्लउ ॐ जिह्वा खिल्लवु ॐ खिल्लतालु हगरु सुबहः चंचु २ हेर ठः ठः महाकाली योग काली कुयोगमुह सिद्ध २ उ, ए, ह कु सप्प मुह बंधउठः ठः।
ॐ भूरिसि भूति धात्री विविध चूणैर लकृता स्वाहा । भूमि शुद्धि । डाकिनी मन्त्र :--ॐ नमो भगवते पार्श्वनाथाय शाकिनी योगिनीना--मडल मध्ये प्रवेशाय २
अवेशय २ सर्व शाकिनी सिद्धि सत्वेन सर्षपास्तारय स्वाहा । सर्षपतारण मन्त्र ---ॐ नमो सुग्रोवाय ह्री खट् वाग, त्रिशूल डमरू हस्ते तोस्तीक्ष्णक कराले,
वटेला नल कपोले लुचित केश कपाल वरदे । अमृत शिर भाले। गडे । सर्व डाकिनोना वशकराय सर्व मन्त्र छेदनी निखये आगच्छ भवती त्रिशूल लोलय २ इ अरा डाकिनि, चले ३ ।