SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 447
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लघुविद्यानुवाद ३८७ (५) ५ से ६ तक लिखे, फिर १-२-३-४ लिखे तो यह अशुभ है। स्थान भ्रष्ट कराता है। अत इसे न लिखे । (६) ६ के अक से शरू कर द तक लिखे, फिर १ से ५ तक लिखे, उस पर कोई मारण का प्रयोग नही कर सकेगा। (७) ७ के अक से शुरू कर ६ तक लिखे, फिर १ से ६ तक लिखे, तो अनेक मनुष्य वश हो। (८) ८ के अक से शुरू कर ६ तक लिखे, फिर १ से ८ तक लिखे, तो धन की वृद्धि हो । इसको गिनती मे लिखने से अलग अलग फल की प्राप्ति होती है - १००० लिखने से सरस्वती प्रसन्न होती है । विष का नाश होता है । २००० लिखने से लक्ष्मी प्रसन्न होती है। दुख का नाश होता है । शत्रु वश मे होता है। उत्तम खेती होती है । मन्त्र तन्त्र की सिद्धि होती है। ३००० लिखने से वशीकरण होता है, मित्र की प्राप्ति होती है। ४००० लिखने से भगवान व राज्याधिकारी प्रसन्न होते है, उद्योग धन्धा प्राप्त होता है। ५००० लिखने से देवता प्रसन्न होते है, वध्या के गर्भ रहता है। ६००० लिखने से शत्रु का अभिमान टूटता है, खोई वस्तु वापिस मिलती है, एकान्तर ज्वर मिटता है, निरोग रहता है। १५००० लिखने से मनवाछित कार्य मे सफलता मिलती है । शभ कार्य के लिए शुक्ल पक्ष मे उत्तर दिशा की ओर मुंह करके यन्त्र लिखना चाहिए । सफेद माला, सफेद वस्त्र तथा सफेद आसन हाना चाहिये । साधना के दिनो मे ब्रह्मचर्य का पालन, सात्विक भोजन, शुद्ध विचार रक्खे जाने चाहिए। लिखने के वाद एक यन्त्र को रखकर बाकी सभी को आटे की गोलियो मे भरकर मछलियो को खिला देना चाहिये या नदी मे वहा देना चाहिये। चादी या सोने के मादलिया मे डालकर पुरुष को दाहिने हाथ और स्त्री को वाये हाथ मे या गले मे धारण करना चाहिये। ।। इति ।। (चौसठयो विधि प्रारम्भ) विधि :- यह चौसठ यौगिनियो का प्रभावक यन्त्र है। यह यन्त्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी रविवार या चर्तुदशी रविवार को सूर्य दिशा की ओर मुह कर, अष्टगन्ध से भोजपत्र पर लिखना चाहिये । अथवा सोने, चादी या ताबे के पत्र पर खुदवा कर घर मे पूजन के लिये रखा जा सकता है। पूजन मे रखने के वाद नित्य धूप, दीप करना चाहिये। शरीर की दुर्बलता, पुराना ज्वर तथा किसी भी प्रकार की शारीरिक व्याधि के लिये
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy