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________________ लघुविद्यानुवाद पूर्व दिशा की ओर मुख कर ॐ ह्रो श्री क्ली एकाक्षय भगवते विश्व रुपाय सर्व योगे - श्वराय त्रेलोक्य नाथाय सर्व काम प्रदाय नम दीवाली के दिन १२,५०० हजार जप पद्मासन से यन्त्र न० ६५ यन्त्र न० ६६ ३२२ क्ली हैँ देवस्य | सर्वसिद्धि कुरु कुरु श्रीँ हीँ 颚 यन्त्र न० ६७ ॐ क्लीँ हैँ क्लीँ करे । माला प्रवाल की होनी चाहिये । पीछे होम करे, होम की विधि - बादाम १०८ - प्रखाल ( ) १०८ - सुपारी १०८ लोवान सेर १|| काली मिरच सेर १||, दाख सेर 01 - गोला 01 - जव सेर this 牁 he भीँ रौँ ८ ०।—घी सेर—२ बेर की लकडी, अर्द्ध रात्रि मे उत्तर दिशा मे मुख कर हवन करना । चैत्र सुदी आसोद मुदो ८ दिवाली, होली और ग्रहण के दिन मे नारियल को पूजन करना । यत्र मे देव दत्त की जगह अपना नाम देना । तीनो यन्त्रों की विधि एक ही है ।। ६५ ।। ६६ ।। ६७ ।।
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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