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________________ लघुविद्यानुवाद जाते है । यन्त्र तैयार हो जायेगा तब धूप से खेव कर इक्कीस बार ऊपर कर पीडा वाले को बाँधने से ज्वर पीडा मिट जाय तब यन्त्र को कूए के पानी मे डाल देना, विश्वास रखना और इष्ट देव को स्मरण करते रहना ||३७|| २८४ इस यन्त्र को लेना चाहिए। सोने की सिद्धि दायक एक सौ प्राठवां यंत्र || ३८ ॥ अष्ट गघ से भोज पत्र या कागज निब हो तो और भी अच्छा है । यत्र न० ३८ ४६ 11 ५२ ४ ५३ mr ३ ४७ ५ 1 o ५० ८ पर लिखना चाहिये । कलम चमेली की यन्त्र तैयार कर बाजोट पर रखकर धूप, ४८ ७ w ४६ १ ५१ दीप, पुष्प चढा कर पूजन वास क्षेप तप से पूजा कर सामने फल नैवेद्य चढा कर नमस्कार कर यत्र को समेट कर पास मे रखे । यन्त्र जिस कार्य के लिये बनाया हो उसका सकल्प यन्त्र की पूजा करने के बाद खयाल कर नमस्कार कर लेवे और जहाँ तक कार्य सिद्ध न हो तब तक प्रात काल मे नित्य प्रति धूप से या अगरबत्ती से खेव लिया करे । इष्ट देव का स्मरण कभी न भूले । कार्य सिद्ध होगा ||३८|| भूत प्रेत कष्ट निवारण एक सौ छत्तीस यत्र ||३६|| इस यन्त्र को मकान के बाहर भी लिखते है और पास मे भी रखने को बताया जाता है। वैसे तो लिखने का दिन दीवाली की रात्रि को बताया है । परन्तु आवश्यकता अनुसार जब चाहे लिखले और हो सके तो अमावस्या की रात्रि मे लिखना जिसमे यन्त्र लाभ दायक होगा ।
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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