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________________ तृतीय यंत्राधिकार मंत्र लिखने की विधि व बनाने की विधि श्लोक :-इच्छा कृतार्द्ध कृत रूप हीनं। धने गृहे, षोडश सप्त चाष्टौ । १५ १०-० १ २ ७ ६ ३ ८ १ ४ ५ तिथि दशांशे प्रथमे च कोष्टे । द्वि सप्त षट् त्रि अष्ट कु वेद वाण । अर्थ:-जितने का यन्त्र बनाना हो उस सख्या का प्राधा करना, उसमे से एक कम करना, पुन. एक-एक कम कर लिखना, धने गृहे-६ वा कोठे में लिखना, फिर १६ वे कोठे मे लिखना, फिर ७ वे कोठे मे लिखना, फिर ८वे कोठे मे लिखना, फिर १५ वे कोठे मे लिखना, फिर १० वे कोठे में लिखना, इतना लिख जाने के बाद जो कोठे खाली रह जाये कु वेद-वारण उन कोठो मे क्रमश: २, ७, ६, ३, ८, १, ४, ५। उदाहरणार्थ यन्त्र नीचे मुजब देखो जैसे कि हमको बनाना है ८४ का यन्त्र-- यन्त्र ८४ का त 38 ८४ -२-४२-१-४१ इस ४१ संख्या को कोष्टक का जो प्रथम खाना है चार लाइन वाला, उसके दूसरे खाने मे ४१ सख्या को रक्खे। फिर श्लोक मे लिखा है कि, धने गडे. राशियो मे सबसे अन्तिम वाली राशि धन राशि है। इसलिए धन राशि को हवा न० दिया है। सो कोष्टक मे भी नोवा खाना है उसमे एक सख्या घटा कर ४० रख देवे। इस प्रकार श्लोक मे जो जो नम्बर पूर्वक सकेत दिया है, उन २ खाने मे एक २ सख्या को कम करते हुए रख देना। इस प्रकार
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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